फिर से भाजपाई बनेंगे पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह, नई भूमिका के लिए खुद को कर रहे तैयार

 लखनऊ
कल्याण सिंह
कल्याण सिंह
राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह पांच साल बाद सोमवार को फिर औपचारिक रूप से भाजपाई हो जाएंगे। उन्हें भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह संगठन मुख्यालय पर पार्टी की सदस्यता दिलाएंगे। भले ही लोग यह मान रहे हों कि राज्यपाल की भूमिका के बाद कल्याण का भाजपा में वापसी का फैसला सामान्य है। पर ऐसा नहीं लगता। पूरी स्थितियों पर गौर करें तो इसके गूढ़ निहितार्थ हैं जो भविष्य में सामने आएंगे।

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सामान्य तौर पर लगता है कि जिस तरह राम नाईक ने राज्यपाल की भूमिका से निवृत्त होने के बाद भाजपा की सदस्यता ले ली है, वैसे ही कल्याण ले रहे हैं, लेकिन कल्याण का मामला वैसा नहीं लगता। लोगों को याद होगा कि कल्याण कहा करते थे, ‘राम मंदिर के लिए एक क्या सैकड़ों सत्ता को ठोकर मार सकता हूं। एक दिन क्या सात जन्मों की सजा भुगत सकता हूं।’

ऐसे बयानों को लेकर चर्चा में रहे कल्याण ने फिर सक्रिय राजनीति में वापसी का जो फैसला किया है, वह सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। परिस्थितियों से लगता है कि लंबे समय तक पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार और अपनी चालों से विपक्ष को छकाते रहे कल्याण ने आगे की भूमिका के लिए खुद को तैयार करना शुरू कर दिया है।

‘रामभक्त कल्याण’ के रूप में दिखना है मकसद

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 19 अप्रैल 2017 को भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित कई अन्य लोगों पर लगे ढांचा ध्वंस मामले में आपराधिक साजिशों के आरोपों को फिर बहाल करने का आदेश दिया था।

कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि 1992 में ढांचा ध्वंस के समय यूपी के सीएम रहे कल्याण सिंह को मुकदमे का सामना करने के लिए आरोपी के तौर पर नहीं बुलाया जा सकता। क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपालों को संवैधानिक छूट मिली है। लेकिन अब कल्याण राज्यपाल के पद से मुक्त हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें कोर्ट में पेश होना पड़ सकता है।

स्वाभाविक है कि उस स्थिति में वे 1991 वाले ‘रामभक्त कल्याण’ के रूप में दिखना चाहेंगे। भले ही उम्र के चलते आवाज में वह कड़क न दिखे, पर उस स्थिति में भाजपा के नेता के तौर पर भूमिका निभाना न सिर्फ कल्याण के लिए ज्यादा आसान होगा, बल्कि भाजपा के लिए भी लाभप्रद होगा।

मंत्रिमंडल से धर्मपाल की विदाई के बाद डैमेज कंट्रोल की भी रणनीति

राजनीति शास्त्री प्रो. एस. के. द्विवेदी कहते हैं कि जिस तरह मंदिर मुद्दा निर्णायक मोड़ पर दिख रहा है उसके चलते भी कल्याण का भाजपा की सदस्यता लेने का फैसला खास है। फैसला जो भी हो पर उस पर देश में नए समीकरण बनने तय हैं। उस स्थिति में संघ परिवार और भाजपा निश्चित रूप से इस मुद्दे को धार देकर देश में फिर भगवा माहौल बनाने की कोशिश करेंगे। तब कल्याण के भाजपा के मंचों पर रहना ही रणनीतिकारों के काम को आसान बना देगा। साथ ही हिंदुओं को एकजुट करना आसान हो जाएगा। कल्याण भाजपा में पिछड़े वर्ग के बड़े चेहरे हैं।

वे लोध बिरादरी से आते हैं उसी समाज के धर्मपाल की पिछले दिनों मंत्रिमंडल से विदाई हो चुकी है। लोधी भाजपा के परंपरागत वोटर रहे हैं। कल्याण की भाजपा की सदस्यता लेने के पीछे धर्मपाल की विदाई के बाद डैमेज कंट्रोल की रणनीति भी है।

लंबे प्रशासनिक अनुभव वाले शख्स को प्रदेश में संरक्षक की भूमिका में रखकर भाजपा कल्याण की हिंदूवादी छवि के साथ अगड़ों व पिछड़ों को एससी के साथ जोड़कर जहां आगे की राजनीतिक लड़ाई को 80 बनाम 40 बनाने की जमीन तैयार करना चाहती है तो संरक्षक के रूप में उनके अनुभवों से प्रदेश सरकार की भूमिका को और प्रभावी बनाना चाहती है।

कल्याण के स्वागत की तैयारी में जुटे कार्यकर्ता

भाजपाई कल्याण के स्वागत की तैयारी में जुटे हुए हैं। कल्याण 9 सितंबर को 11 बजे अमौसी हवाई अड्डे पर पहुंचेंगे। जहां भाजपा नेता और सरकार के कई मंत्री उनका स्वागत करेंगे। हवाई अड्डे से वे सीधे पार्टी मुख्यालय पहुंचेंगे।

जहां उनका स्वागत होगा और वे भाजपा की सदस्यता ग्रहण करेंगे। इसके बाद वो 2 माल एवन्यू स्थित आवास पर चले जाएंगे। यह आवास पहले उन्हें ही आवंटित था, लेकिन अब उनके पौत्र व प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री डॉ. संदीप सिंह को आवंटित है। यहां पर वे पत्रकारों से बातचीत करेंगे और अपनी आगे की भूमिका बताएंगे। वो कार्यकर्ताओं से भी मिलेंगे।

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