पीएम मोदी और शी जिनपिंग मिलकर बदल सकते हैं एशिया की तस्वीर

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खास बातें

  • संकेत है कि कश्मीर और पाकिस्तान भारत चीन के संबंधों में आड़े नहीं आएगा
  • अंग्रेजों ने सीमाएं बनाकर भारत चीन के बीच सीमा विवाद पैदा कर दिया
  • चीन अफगानिस्तान में भी अपनी बढ़ी हुई भूमिका देख रहा है
  • चीन को उम्मीद है कि मोदी और शी मिलकर एशिया की तस्वीर बदल सकते हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही तरह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी आम चीनी जनता में बेहद लोकप्रिय हैं। चीन की जनता मानती है कि चेयरमैन माओत्सेतुंग आधुनिक चीन के संस्थापक थे तो तंग शियाओ फंग आधुनिक चीन के निर्माता और अब शी जिनपिंग जिन्हें चीनी आदरपूर्वक शी ता..दा.. कहकर बुलाते हैं, तीसरे बड़े नेता हैं जिनके नेतृत्व में चीन पूरी दुनिया में सीना तान कर खड़ा है और लगातार आगे बढ़ रहा है। चीन को उम्मीद है कि मोदी और शी मिलकर एशिया की तस्वीर बदल सकते हैं।

चीनी मानते हैं कि भले ही भारत और चीन के बीच कुछ विरोधाभासी मुद्दे और सीमा विवाद है, लेकिन राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच संबंधों की जो निजी कैमिस्ट्री है और जिस तरह दोनों देशों के बीच आर्थिक, तकनीकी, शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति आदि क्षेत्रों में तेजी से सहयोग बढ़ रहा है, उससे विवादित मुद्दों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। कई चीनी रणनीति विशेषज्ञ यहां तक मानते हैं कि अगर सबकुछ ठीक रहा तो ये दोनों नेता सीमा विवाद का भी कोई एसा हल निकाल लेंगे जो दोनों देशों को मान्य होगा।

भारत में चीन के पूर्व राजदूत रहे सुन यू शी तो सीमा विवाद को लेकर इतने भावुक हो जाते हैं कि यहां तक कहते हैं कि क्या चीन और भारत के बीच सीमाएं होनी चाहिए। सुन कहते हैं कि वह खुद तीन दौर की सीमा विवाद वार्ता में शामिल रहे हैं और महसूर करते हैं कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद आसानी से हल हो सकता है अगर पश्चिमी नजरिए की बजाय समस्या को भारत चीन के नजरिए से देखा जाए। उनका कहना है कि प्राचीन काल से ही दोनों देशों के बीच विद्वानों, नागरिकों, व्यापारियों, भिक्षुओं का बेरोकटोक आवागमन रहा है, लेकिन अंग्रेजों ने सीमाएं बनाकर भारत चीन के बीच सीमा विवाद पैदा कर दिया।चीनी थिंक टैंक चाइना पब्लिक डिप्लोमेसी एसोसिएशन के उपाध्यक्ष ल्यू लिन्छुवान को राष्ट्रपित शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बहुत उम्मीदें हैं। इसी साल चीन के राष्ट्रीय दिवस एक अक्टूबर के बाद कभी भी होने वाली राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा को लेकर चीनी राजनयिक और मीडिया में खासा उत्साह है। भारतीय विदेश मंत्री एस.जयशंकर की हाल ही में हुई बीजिंग यात्रा और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ उनकी बातचीत में राष्ट्रपति शी की भारत यात्रा की तैयारियों पर भी चर्चा हुई।

चीन में भारत के राजदूत विक्रम मिस्री लगातार चीनी विदेश मंत्रालय के साथ इस यात्रा की तैयारियों में जुटे हैं। जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 में संशोधन करके विशेष राज्य के दर्जे के खात्मे और राज्य के दो संघ शासित क्षेत्रों में विभाजन के बाद भारतीय विदेश मंत्री की चीन यात्रा बेहद महत्वपूर्ण हो गई। कश्मीर पर चीन के असहमति वाले स्वरों के बावजूद दोनों विदेश मंत्रियों की वार्ता जिस सौहार्दपूर्ण ढंग से हुई और दोनों देशों ने एक दूसरे की चिंताओं को साझा किया वह इस बात का संकेत है कि कश्मीर और पाकिस्तान भारत चीन के संबंधों में आड़े नहीं आएगा।

दोनों देशों को उम्मीद है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी बातचीत के बाद सहमति और बढ़ेगी। दोनों देश वूहान भावना को और आगे बढ़ाएंगे। कश्मीर के मुद्दे पर चीन बहुत आगे अभी नहीं जा सकता है,क्योंकि हांगकांग में हो रहे विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर उसे वैश्विक मंच पर भारत का सहयोग चाहिए। इसलिए भी चीनी विदेश मंत्रालय राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा को एक अवसर के रूप में देख रहा है।

क्योंकि हांगकांग को लेकर जहां अमेरिका और पश्चिमी देश चीन को घेरने में जुटे हैं, वहीं अभी तक भारत ने इस मुद्दे पर अपना रुख नरम ही रखा है और भारत के इस नरम रुख को चीन सकारात्मक मान रहा है। सूत्रों के मुताबिक अफगानिस्तान को लेकर अमेरिका और तालिबान की बातचीत अंतिम दौर में है और अमेरिका के वहां से निकलने के बाद चीन अफगानिस्तान में भी अपनी बढ़ी हुई भूमिका देख रहा है।

चीनी विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि दक्षिण एशिया में शांति बनी रहे इसकी बड़ी जिम्मेदारी चीन और भारत दोनों के कंधों पर है। इसलिए अफगानिस्तान में अपनी भूमिका के लिए चीन को भारत का सहयोग और समर्थन चाहिए। चीनी राजनयिकों को उम्मीद है कि राष्ट्रपति शी की भारत यात्रा से इस मुद्दे पर भी दोनों देशों के बीच एक जरूरी सहमति बनेगी।

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