पंजाब को पिछले बजट में मिली निराशा, चुनावी राज्य के लोगों को इस बार बड़ी आशा

पंजाब को पिछले बजट में मिली निराशा, चुनावी राज्य के लोगों को इस बार बड़ी आशा

चंडीगढ़
पंजाब विधानसभा चुनाव के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फिरोजपुर रैली भले ही विफल हो गई हो लेकिन माना जा रहा है कि केंद्र सरकार राज्य को उन 17000 करोड़ के विकास प्रोजेक्टों में से कुछ न कुछ दे सकती है।

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण मंगलवार को संसद में वर्ष 2022-23 के लिए जब आम बजट पेश करेंगी, तब पंजाब भी लगातार चार साल से लंबित अपनी मांगों के पूरा होने की आस लिए खड़ा होगा। वर्ष 2018-19 से लेकर 2021-22 तक पेश हुए चार आम बजट में पंजाब के हाथ कुछ भी नहीं आया, जबकि इस सीमावर्ती राज्य की अंदरूनी और अंतरराष्ट्रीय सीमा पार से पैदा की जा रही मुश्किलों पर केंद्र सरकार हमेशा सजग होने का दावा करती रही है फिर भी इस बार उममीद की जा रही है कि पंजाब में 2022 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर केंद्र सरकार कुछ मेहरबानी दिखा सकती है।

बीता वर्ष कोविड की भेंट चढ़ जाने और उससे पहले तीन बजट में पंजाब को किसी भी तरह का राहत पैकेज नहीं मिला और न प्रदेश के लिए कोई नई विकास योजना को ही मंजूरी मिल सकी। पिछले साल केवल एक राहत, शराब पर लाइसेंस फीस के रूप में मिली थी, जिसमें केंद्र ने 18 फीसदी जीएसटी को हटा लिया था।

वैसे बीते दो साल से पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के अलावा वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल विभिन्न विकास योजनाओं को लागू करने और पुरानी योजनाओं की बकाया राशि जारी करवाने के लिए बार-बार दिल्ली के चक्कर लगाते रहे और प्रधानमंत्री के अलावा संबंधित मंत्रालयों के मंत्रियों के साथ बैठकें करते रहे। हालांकि इससे पंजाब की कांग्रेस सरकार और केंद्र के साथ संबंधों में भी मनमुटाव की स्थिति बनी रही, क्योंकि पंजाब सरकार का आरोप है कि केंद्र सरकार द्वारा ज्यादातर मामलों और राज्य सरकार द्वारा उठाई गई मांगों पर कोरे आश्वासन ही दिए जाते रहे। वित्त मंत्री मनप्रीत बादल केंद्र द्वारा जीएसटी के स्टेट शेयर की अदायगी में देरी को लेकर साल भर खासे नाराज रहे।
बजट से ये हैं पंजाब की उम्मीदें
प्रदेश के सरहदी जिलों में ढांचागत विकास के लिए केंद्रीय परियोजनाओं की मांग लंबे समय से की जाती रही है। इसके तहत सीमांत जिलों में रेलवे की विस्तार की मांग और सीमावर्ती जिलों के लिए विशेष पैकेज की मांग पर केंद्रीय बजट लगातार खामोश रहे हैं। इनमें पठानकोट-गुरदासपुर रेलवे लाइन को डबल करने, गुरदासपुर जिले के अंतर्गत आने वाले रेलवे स्टेशनों को अपग्रेड करने, फिरोजपुर से चंडीगढ़ ट्रेन को फाजिल्का से चलाने, फाजिल्का से हरिद्वार के लिए सीधी ट्रेन, जलालाबाद-मुक्तसर नई रेल लाइन, जालंधर व जालंधर कैंट स्टेशनों के आधुनिकीकरण, फरीदकोट में छह रेलवे ओवरब्रिज बनाने की मांग, राजपुरा-मोहाली रेललाइन का बाकी 14 किमी हिस्सा पूरा कर चंडीगढ़ को सीधे मालवा से जोड़ने की मांगों के अलावा मोगा-कोटकपूरा, नवांशहर-अमृतसर नई रेललाइन की मांग अब तक लंबित है।

पंजाब सरकार राज्य में साइकिल, होजरी, लोहा इंडस्ट्री के लिए लंबे समय से कर राहत की मांग करती रही है। प्रदेश सरकार यह मुद्दा इस आधार पर भी केंद्र के समक्ष बार-बार उठाती रही है कि पड़ोसी हिमाचल प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के बाद से पंजाब के उद्योग हिमाचल स्थानांतरित होने लगे हैं। इसके चलते सूबे की सरकार पंजाब को भी विशेष राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए।

दिल्ली की सीमाओं पर एक साल तक चले किसान आंदोलन के बाद केंद्र सरकार ने तीन विवादित कृषि कानून तो वापस ले लिए लेकिन एमएसपी की गारंटी जैसे मुद्दे पर टालमटोल की स्थिति बनी हुई है। पंजाब में छोटी होती जोत, फसलों को न्यूनतम मूल्य में अपेक्षाकृत वृद्धि नहीं होने और कर्ज में डूबे किसानों की कर्ज माफी सबसे बड़ा मुद्दा है, जिसमें राज्य सरकार अपनी कर्ज माफी योजना में केंद्र से सहयोग की मांग करती रही है। वर्ष 2020-21 के केंद्रीय बजट में मोदी सरकार ने देश के किसानों को लाखों रुपये के कर्ज मुहैया कराने के लिए इस मद में पैसा बढ़ाया लेकिन पूरे बजट में किसानों के पिछले कर्ज माफ करने को लेकर कोई जिक्र नहीं किया।

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