सार
- वित्त मंत्री के बजट भाषण से अच्छे दिन गायब, सबका विकास का कोई अता पता नहीं
- सरकार नाकामी मानने को भी तैयार नहीं, पूर्व पीएम मनमोहन से मदद मांगने में आ रही शर्म
विस्तार
चिदंबरम ने कहा, आर्थिक मोर्चे पर सरकार का रवैया बेहद लापरवाही वाला रहा है। बजट की ही बात करें तो ‘सबका विकास सबका साथ’ और ‘अच्छे दिन आएंगे’ का नारा लगाने वाली सरकार के बजट में नहीं बताया गया कि आखिर अच्छे दिन कब आएंगे। हैरानी इस बात की है वित्तमंत्री के 160 मिनट के भाषण में आर्थिक सर्वे के बिंदुओं का कोई जिक्र नहीं है और चुनौतियों से निपटने का कोई रोडमैप नहीं पेश किया गया।
सक्षम डॉक्टरों को सरकार ने किया बाहर
ये लोग अर्थव्यवस्था की नब्ज को समझते थे और इसे बचाने में सक्षम थे। उन्होंने कहा, मैं सरकार से पूछना चाहता हूं कि आखिर बीमार अर्थव्यवस्था के लिए उनके डॉक्टर कौन हैं?
नोटबंदी और जीएसटी ने बिगाड़ी अर्थव्यवस्था की सेहत
जबकि उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति जनवरी 2019 में महज 11 महीने के भीतर 1.9 फीसदी से बढ़कर 7.4 फीसदी हो गइ है। बैंकों के कर्ज में भी 8 फीसदी वृद्धि हुई जिसमें गैर खाद्य कर्ज 7 फीसदी और उद्योग का कर्ज महज 2.7 फीसदी है। औद्योगिक सूचकांक में भी महज 0.6 फीसदी वृद्धि दिखाई गई है।