देवताओं का डर दिखाकर वोट का जुगाड़

शिमला : हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मतदान का दिन जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे विभिन्न दलों के उम्मीदवार अपनी जीत पक्की करने के लिए विभिन्न तरह के हथकंडे और रणनीति अख्तियार कर रहे हैं। ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए उम्मीदवार चुनाव प्रचार के सामान्य तरीकों के साथ-साथ कुछ ऐसे टोटके भी अपना रहे हैं जो सिर्फ किसी खास मौकों और खास उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही किया जाता है।

यहां बात हो रही है लोटा लूण रस्म की। हालांकि इस रस्म का प्रयोग आमतौर पर दैवीय कार्यों के मामलों में ही देखने को मिलता है लेकिन जैसे ही कोई चुनाव आता है तो इसका प्रयोग किसी एक उम्मीदवार के पक्ष में एकतरफा वोट डलवाने के लिए भी किया जाता है। यहां तक कि पंचायत चुनाव में भी कई जगह इस तरह की कसमें खिलाई जाती हैं।
यह व्यवस्था प्रदेश के जिला शिमला, सिरमौर, कुल्लू और मंडी के ऊपरी क्षेत्रों में ज्यादा देखी जाती है। इस बार के विधानसभा चुनाव की बात करें तो इन दिनों उक्त क्षेत्रों के कई ग्रामीण इलाकों में कसम खिलाने का सिलसिला शुरू हो चुका है।

क्या है लोटा लूण रस्म
लोटा लूण रस्म अपने कुलदेवता का ध्यान करते हुए की जाती है। यहां लूण का मतलब है नमक। रस्म नमक को पानी से भरे एक लोटे में डालकर की जाती है। चुनाव के संदर्भ में बात करें तो बहुत कम उम्मीदवार ही इस रस्म को करते हैं लेकिन उनके समर्थक इसे अपने गांव या परगना स्तर पर करते हैं। इसके तहत गांव के मुखिया की अध्यक्षता में एक बैठक बुलाई जाती है जिसमें संबंधित गांव के सभी परिवारों के प्रमुख शामिल होते हैं।

बैठक में पहले यह सहमति बनती है कि सभी लोग एक ही उम्मीदवार के पक्ष में वोट डालेंगे और यह एक तरह का एका (एकता) होता है। फिर होती है लोटा लूण रस्म। इसमें सभी मुखिया अपने गांव या इलाके के देवता का ध्यान करते हुए विचार देते हैं कि वे सब संगठित हैं और व्यक्ति विशेष को वोट देंगे। जो इस कसम से बाहर जाएगा, वह ऐसे ही गलना-पिघलना चाहिए जैसे पानी से भरे लोटे में रखा नमक। गांव के बुजुर्ग जानकारों का मानना है कि आमतौर पर यह रस्म गुप्त ही रखी जाती है।

देवताओं की कसम खाने के बाद लोग दूसरी जगह वोट देने से डरते हैं और उन्हें ऐसा करने पर अपने कुलदेवता के श्राप का डर सताता है। इस रस्म को उक्त क्षेत्रों में किसी एक प्रत्याशी के पक्ष में एकतरफा वोट डलवाने का मजबूत टोटका माना जाता है। इसमें देवता का डर दिखाकर एक तरह से मतदाता को ब्लैकमेल किया जाता है।

हालांकि वर्तमान में युवा पीढ़ी इसका विरोध भी कर रही है क्योंकि यह उनके वोट डालने की स्वतंत्रता के खिलाफ माना जाता है और इससे अंधविश्वास को बढ़ावा मिल रहा है। फिर भी गांव या इलाके की सहमति से यह रस्म होती है। हालांकि कई मामलों में एक ही गांव में कुछ लोग इस रस्म में भाग लेने से मना कर देते हैं और ऐसा करना अशुभ माना जाता है।

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