खापों ने बागडोर संभाली , आंदोलन में अब यूपी और हरियाणा का दबदबा

खापों ने बागडोर संभाली , आंदोलन में अब यूपी और हरियाणा का दबदबा

सोनीपत (हरियाणा)
ट्रैक्टर परेड के बाद टूटते आंदोलन को हरियाणा व यूपी की खापों समेत किसानों ने अपने दम पर दोबारा खड़ा किया
पहले पंजाब के 32 संगठनों के फैसले पर लगती थी संयुक्त किसान मोर्चा की मुहर, अब तीन का फैसला सबसे अहम
यूपी के राकेश टिकैत, ऋषिपाल अंबावता, गुरनाम सिंह चढूनी के साथ हरियाणा व यूपी के किसानों को मिल रही तवज्जो 
हरियाणा व यूपी में खाप करा रही अधिकतर महापंचायत, आंदोलन के लिए करोड़ों रुपये भी जुटाकर पहुंचा रही खाप 
विस्तार
किसान आंदोलन में अब पूरी तरह से बदलाव दिख रहा है और ट्रैक्टर परेड से पहले तक जहां पंजाब का दबदबा दिखाई देता था। वहीं किसान आंदोलन में अब हरियाणा व यूपी का दबदबा कायम हो गया है। इसका सबसे बड़ा कारण खापों के हाथों में बागडोर आना माना जा रहा है जो अब केवल खाद्य सामग्री ही आंदोलन में नहीं पहुंचा रही हैं बल्कि आंदोलन के लिए किसानों को एकजुट करने से लेकर महापंचायतों को कराने व करोड़ों रुपये जुटाकर मदद भी कर रही हैं। 

इसका असर संयुक्त किसान मोर्चा के अंदर भी दिख रहा है और जहां पहले पंजाब के 32 संगठनों के फैसले पर मोर्चा की मुहर लगती थी, वहीं अब राकेश टिकैत, ऋषिपाल अंबावता व गुरनाम चढूनी को हर फैसले में शामिल किया जा रहा है। कृषि कानून रद्द करने की मांग को लेकर 78 दिन से किसान आंदोलन कर रहे हैं और वह नेशनल हाईवे पर डेरा डाले हुए हैं। इस बीच आंदोलन में कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में बवाल के बाद आंदोलन पूरी तरह से बदल गया है। 

उससे पहले तक आंदोलन में पंजाब के किसानों का दबदबा रहता था और दिल्ली की सीमाओं पर वहां के किसान ही सबसे ज्यादा दिखाई देते थे। इसलिए ही संयुक्त किसान मोर्चा के 40 संगठनों में पंजाब के 32 संगठनों के फैसले ही मान्य होते थे। जब दिल्ली की घटना के बाद पंजाब के अधिकतर किसान वापस घर चले गए और आंदोलन टूटने लगा तो हरियाणा व यूपी के किसानों ने मोर्चा संभालना शुरू किया। 

यूपी के भाकियू नेता राकेश टिकैत की भावुक अपील के बाद हरियाणा व यूपी की खापों ने पूरी बागडोर को संभालते हुए किसानों को एकजुट किया जिसके बाद से आंदोलन पूरी तरह से बदल गया और दिल्ली की गाजीपुर सीमा पर यूपी के किसान दिखाई देते हैं तो कुंडली व टीकरी पर हरियाणा के किसान भी काफी ज्यादा जमा रहते हैं। 

अब हरियाणा व यूपी के किसान नेताओं को तवज्जो भी खूब मिल रही है और संयुक्त किसान मोर्चा में उनका कद सबसे ऊपर हो गया है। भाकियू (रजि) के प्रवक्ता राकेश टिकैत, भाकियू अंबावता के ऋषिपाल अंबावता, भाकियू हरियाणा के गुरनाम सिंह चढूनी के बगैर कोई फैसला संयुक्त किसान मोर्चा में नहीं लिया जाता क्योंकि यह पंजाब के संगठनों के नेता भी समझ गए है कि आंदोलन दोबारा से हरियाणा व यूपी के किसानों ने खड़ा किया है और इन दोनों प्रदेशों के बिना आंदोलन को आगे भी चलाना मुश्किल है। 

खापों ने आगे आकर संभाली बागडोर, आंदोलन में करोड़ों का चंदा भी पहुंचा रहीं
किसान आंदोलन में जहां खापों ने पहले केवल पीछे रहकर खाद्य सामग्री पहुंचाने का जिम्मा उठाया हुआ था। वहीं अपने किसान नेताओं की अपील के बाद खापों ने आगे आकर आंदोलन की पूरी बागडोर को संभाल लिया है जिसमें किसानों को एकजुट कर धरनास्थल पर लेकर जा रहे हैं तो महापंचायत भी ज्यादातर खाप ही करा रही हैं।

यूपी में बालियान व चौरासी खाप समेत थांबेदारों ने मोर्चा संभाला तो हरियाणा में कंडेला, सर्वखाप, दहिया, दलाल, सरोहा समेत अन्य खापों ने महापंचायत करानी शुरू की है। खापों ने आंदोलन के लिए चंदा भी इतना जुटाना शुरू कर दिया है कि किसी तरह की परेशानी न हो। खापों ने करीब एक करोड़ रुपये से ज्यादा का चंदा जुटाकर आंदोलन को मदद पहुंचाई है।  
किसान आंदोलन में पहले हरियाणा के कम किसान थे और किसानों को काफी कम तवज्जो मिलती थी। लेकिन अब हरियाणा के किसान सबसे ज्यादा है और पहले के मुकाबले तवज्जो भी किसानों को ज्यादा मिल रही है। खापों ने अब आंदोलन के लिए पूरी जिम्मेदारी संभाली हुई है, जिससे किसी तरह की कोई समस्या नहीं हो। क्योंकि हम सभी चाहते है कि किसानों की समस्या का जल्द से जल्द समाधान हो।
सुरेंद्र दहिया, प्रधान, दहिया खाप।
हमारा सभी का एक ही लक्ष्य है कि सरकार से कृषि कानून रद्द कराए जाए। यह जरूर है कि आंदोलन में कुछ बदलाव जरूर आया है और अब हरियाणा व यूपी के किसान काफी बढ़े है। खापों का सहयोग भी इस समय खूब मिल रहा है और यहां के किसान लगातार आंदोलन में आगे आ रहे है। 
शमशेर दहिया, महासचिव, भाकियू अंबावता।

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