चंडीगढ़
21 मार्च को पंजाब दौरे पर आए आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की भाजपा नेता और पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांता चावला से मुलाकात ने प्रदेश के सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। दोनों नेताओं की यह मुलाकात इतनी अप्रत्याशित है कि पंजाब भाजपा सकते में है। वहीं कांग्रेस व अकाली दल ने खामोशी साधकर जमा-घटाव शुरू कर दिया है। पंजाब आप के नेताओं ने भी इस मुलाकात को लेकर कोई भी बयान जारी नहीं किया है।
केजरीवाल और चावला के बीच अमृतसर के सर्किट हाउस में रविवार को ब्रेकफास्ट पर मुलाकात हुई थी। इस दौरान आप विधायक बलजिंदर कौर भी मौजूद रहीं, लेकिन मुलाकात के दौरान क्या बातचीत हुई, इस पर कोई भी कुछ कहने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि दोनों नेताओं की मुलाकात के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।
पंजाब में 2022 में विधानसभा चुनाव हैं और आम आदमी पार्टी राज्य में मुख्यमंत्री का चेहरा तलाश रही है। फिलहाल भगवंत मान के नेतृत्व में पंजाब आप में ऐसा कोई चेहरा दिखाई नहीं दे रहा, जो अपने दम पर विधानसभा चुनाव में पार्टी की नैया पार लगा सके। वहीं पंजाब में भाजपा को स्थापित करने वाले अधिकतर नेता इस समय पार्टी द्वारा हाशिए पर धकेले जा चुके हैं। इनमें लक्ष्मीकांता चावला भी एक हैं। उनकी छवि आज भी आम जनता और अन्य सियासी दलों के सामने बेदाग और तेजतर्रार नेता की है। वे अपनी बात रखने और जनता के मुद्दों को लेकर अपनी ही पार्टी के फैसलों पर उंगली उठाने से कभी पीछे नहीं रहीं।
क्या केजरीवाल लक्ष्मीकांता चावला को अपनी पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरे के तौर पर पेश करने की किसी रणनीति पर काम कर रहे हैं, ये सवाल सियासी हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। फिलहाल अकाली दल ने तो इस घटनाक्रम को किसान आंदोलन की तरफ मोड़ते हुए केजरीवाल और भगवंत मान पर भाजपा से मिलीभगत का आरोप लगाया है। पंजाब कांग्रेस इस घटनाक्रम पर खामोश है।
वहीं अगर केजरीवाल की यही रणनीति है तो पंजाब में सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को ही होगा, क्योंकि कांग्रेस में खुद को अलग-थलग महसूस करने लगे नवजोत सिंह सिद्धू के लिए लक्ष्मीकांता चावला बहुत ही आदरणीय शख्सियत हैं और सिद्धू उनके मार्गदर्शन में काम करने से हिचकेंगे नहीं। वहीं, किसान आंदोलन के कारण प्रदेश में जनविरोध का सामना कर रही पंजाब भाजपा के लिए यह सबसे बड़ा झटका होगा, क्योंकि पार्टी अंदरखाते धड़ों में बंट चुकी है और सीनियर नेता लंबे समय से चुप्पी साधे बैठे हैं।