राज्य के केंद्र शासित प्रदेश में बंटने के पीछे महबूबा को जिम्मेदार ठहराए जाने संबंधी पार्टी के संस्थापक सदस्य मुजफ्फर हुसैन बेग के बयान से पार्टी में असंतोष और बढ़ सकता है।
राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि पीडीपी से जुड़े रहे नेताओं का पहले एलजी, फिर विदेशी राजनयिकों से मिलना और मुजफ्फर बेग का महबूबा के खिलाफ बयान देना इन सभी कड़ियों को महबूबा के खिलाफ मोर्चेबंदी के रूप में देखा जा सकता है।
माना जा रहा है कि तीसरे मोर्चे की कवायद के बीच कुछ और नेताओं को इससे जोड़ा जा सकता है। ऐसे में पार्टी में फूट की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है। पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि महबूबा के नजरबंद होने से पार्टी डैमेज कंट्रोल भी ठीक से नहीं कर पा रही है।
धीरे-धीरे पार्टी से कई नेताओं ने किनारा कर लिया है। ताजा घटनाक्रम में वीरवार को और आठ पूर्व विधायकों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। ये सभी नेता कद्दावर रहे हैं और अपने अपने इलाकों में रसूख रखते हैं। ऐसे में पार्टी को इन नेताओं के विकल्प के रूप में नए चेहरों की तलाश करनी होगी।
लगातार घट रहा जनाधार
सरकार गिरने के बाद से पार्टी में लगातार अंतर्कलह बढ़ते जा रहा है। जनाधार भी घटा है। पार्टी के कद्दावर तथा शिया नेता इमरान रजा अंसारी भी साथ छोड़ चुके हैं। दक्षिणी कश्मीर जो पार्टी का गढ़ रही है, उसमें महबूबा लोकसभा का चुनाव हार चुकी हैं। गत लोकसभा चुनाव में पार्टी को कश्मीर की सभी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था।
वर्ष 2014 के चुनाव में पार्टी की झोली में तीन सीटें आईं थीं। महबूबा से मतभेद बढ़ने के बाद श्रीनगर सीट से तारिक हामिद कर्रा के इस्तीफे के बाद हुए उपचुनाव में भी पार्टी को यह सीट गंवानी पड़ी थी। तब डा. फारूक अब्दुल्ला नेकां की टिकट पर जीते थे।