हे धर्मेश्वरी, अन्न-धन का भंडार भोरी……

गोपेश्वर। हे धर्मेश्वरी, अन्न, धन भंडार भोरी, फिर भेंटा-घाटी होली…., इन मार्मिक जागरों के साथ मंडल घाटी की मां धर्मेश्वरी चंडिका के मंदिर में पिछले नौ दिनों से चल रहा महायज्ञ संपन्न हो गया। घाटी के नौ गांवों की धियाणियों ने मां धर्मेश्वरी को अश्रुपूर्ण विदाई दी। देवी भक्तों ने क्षेत्र में रोग-व्याधि न होने और सुख-शांति की कामनाएं की। बृहस्पतिवार को जैसे ही पूर्णाहूति के साथ महायज्ञ संपन्न हुआ तेज आंधी, तूफान के साथ बूंदाबांदी भी हुई। यज्ञ कुंड बंद होने के पश्चात दोपहर बाद मां धर्मेश्वरी ने गर्भ गृह में प्रवेश किया। इस दौरान हजारों देवी भक्तों ने मां धर्मेश्वरी के दर्शन कर मनौतियां मांगी।
मां धर्मेश्वरी पिछले नौ माह दिवारा भ्रमण पर रही। जब भ्रमण संपन्न हुआ तो मंदिर में 21 मई से महायज्ञ और देवी भागवत कथा का शुभारंभ हुआ। पूर्णाहुति से पूर्व मां धर्मेश्वरी के फर्श के साथ घास से बनाया गया नाग का मुंह और ब्रह्म (निशान) के साथ नाग की पूंछ खिंची जाती है। नाग करीब दो किमी तक लंबा बनाया गया था। गांव की सीमा पर आचार्य ब्राह्मणों द्वारा पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि पूजा के बाद ब्रह्म की संपूर्ण शक्ति फर्श पर आ जाती है। बाद में ब्रह्म को नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।

छह माह तक नहीं होगा कोई कार्यक्रम
मां धर्मेश्वरी चंडिका के मंदिर में महायज्ञ संपन्न होने के बाद मंडल घाटी के नौ गांवों में अब आगामी छह माह तक कोई शादी-ब्याह और अन्य मांगलिक धार्मिक आयोजन नहीं होंगे। यहां तक कि क्षेत्र में मंदिरों की घंटी भी नहीं बजेगी। ब्राह्मण कांति प्रसाद भट्ट बताते हैं कि इस आयोजन से पूर्व छह माह के लिए क्षेत्र की केरबंदी (मंत्रों से नाकेबंदी) की जाती है। इसके चलते महायज्ञ के अलावा क्षेत्र में कोई अन्य कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जाते हैं।

नौ देवी भक्तों का हुआ पुर्नजन्म
नौ माह तक मां धर्मेश्वरी चंडिका के साथ दिवारा भ्रमण के दौरान गांव-गांव घूमे नौ देवी भक्तों का महायज्ञ संपन्न होने के बाद पुनर्जन्म हुआ। ये नौ भक्त नौ माह तक धार्मिक बंधन में रहते हैं। जिससे इन दौरान ये अपने शरीर का एक बाल भी नीचे पड़ने नहीं देते हैं। ये दिवारा भ्रमण से महायज्ञ तक किन्नर के रूप में होते हैं। जब महायज्ञ समाप्त होता है तो पूर्णाहुति के दौरान एक झोपड़ी में इन सभी को पकड़ कर ले जाते हैं। उनका स्नान कराने के पश्चात झोपड़ी में उनके कपडे़ उतार दिए जाते हैं। उनके सिर और दाड़ी के बाल भी काट दिए जाते हैं। बाद में झोपड़ी पर आग लगा दी जाती है। ये नौ लोग तीन दिन तक आपस में एक-दूसरे का मुंह नहीं देखते हैं। इन मार्मिक क्षणों को देखने के लिए यहां सैकड़ों भक्त पहुंचे हुए थे।

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