हाईवे पर भी गरजी थीं ‘नामधारी की राइफलें’

अमरोहा। शराब व्यवसायी चड्ढा बंधुओं की हत्या के हाईप्रोफाइल मामले में चरचा में आए सुखदेव सिंह नामधारी का प्रचंड रूप दिल्ली-लखनऊ नेशनल हाईवे-24 पर भी देखा गया। करीब पांच साल पहले बैलगाड़ी लग्जरी कार से टकराते ही वह इस कदर आपा खो बैठा कि सड़क पर समर्थकों को लेकर राइफलों से करीब बीस से तीस राउंड अंधाधुंध फायरिंग कर डाली। चौकी के ठीक सामने सिपाही को गिरा-गिराकर पीटा था। गुस्साई भीड़ ने घेरकर इनके असलहा छीन लिए थे। हालांकि पोंटी चड्ढा का रसूख यहां भी काम आया और उसकी एक फोन काल पर कार्रवाई तो दूर पुलिस को इनके हथियार तक लौटवाने पड़े थे।
हाईवे किनारे रहने वाले सैकड़ों परिवार पोंटी चड्ढा और उसके भाई की हत्या की खबर से जितने स्तब्ध रहे उससे कहीं ज्यादा इस हत्याकांड में तेजी से उभरे नामधारी नाम सुनकर सन्न हैं। दरअसल, उन्हें नामधारी का वर्ष 2007 की चिलचिलाती धूप में उसका वह किरदार बार-बार दहशत में डाल रहा है जिसे सोचनेभर से उनका शरीर आज भी सिहर जाता है। जोया के मोहल्ला जामा मसजिद निवासी खुद चौधरी अब्दुल्ला का परिवार टीवी चैनल में नामधारी की तस्वीर देखकर हैरत में हैं।
बेटा बाबू कहता हैं कि अब्बू (चौधरी अब्दुल्ला) बैलगाड़ी से खेत से लौट रहे थे। इकबालनगर के सामने हाईवे पर फोरलेन का ब्रिज आधा बना था। निर्माण सामग्री के बीच रास्ते में पड़ा होने से नाली में बैल का पांव चला गया। पीछे दिल्ली दिशा से काले शीशे में हूटर बजातीं तीन-चार गाड़ियाें में एक से बैल टकरा गया। बस पलभर में सफेद पगड़ी बांधे सरदार (नामधारी) गाली-गलौज करता हुआ सड़क पर निकला। करीब 80 वर्षीय अब्बू ने उम्र का लिहाज करने कहा तब आपा खो बैठा और राइफल से खुद ताबड़तोड़ गोलियां हवा में दागता रहा।
प्रत्यक्षदर्शी रहे हाजी यूनुस, अरकान कहते हैं कि फायरिंग की आवाज सुनकर भीड़ जमा हो गई। पास की चौकी से सिपाही आया तो उसके समर्थकों ने गिरा लिया और जमकर पीट डाला। 25-30 हवाई फायर कर डाले। फिर भीड़ भी आपा खो बैठी और इनकी 5-6 राइफलें व पिस्टल और रिवाल्वर छीन लिए। मिनटों में कोतवाल साहब आ गए। उन्होंने हमारी सुनने के बजाय हमसे असलहा लेकर नामधारी को लौटा दिए। बोले-चड्ढा साहब (पोंटी चड्ढा)ने रेंज के हमारे साहब को फोन किया था। ये उनके आदमी हैं। लिहाजा बिना कार्रवाई और पूछताछ के बाइज्जत काफिले को रुखसत कर दिया।

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