संगम का नजारा देख फटी रह गई आंखें

रुद्रप्रयाग। शनिवार को आपदा आने पर रात भर फोन बजता रहा। तड़के करीब साढे़ पांच बजे हम रात भर की बारिश और अलकनंदा-मंदाकिनी नदी की बाढ़ से मची तबाही का जायजा लेने निकल गए। सबसे पहले रुद्रप्रयाग बाजार में केदारनाथ हाईवे पर स्थित पुल की ओर गए। यहां पुल से करीब दो-तीन मीटर नीचे पानी बह रहा था। लेकिन बेलणी मुहल्ले और नगर पालिका ऑफिस मुहल्ले में आवासीय भवनों की पहली और दूसरी मंजिल जलमग्न दिखाई दे रही थी। कुछ लोग इन्ही भवनों के ऊपर से नदी पर निगाहें गड़ाए हुए थे कि शायद पानी कुछ कम हो और घर के अंदर जो कुछ बचा खुचा हो उसको निकाल लें। वहीं मायूस खड़े मनमोहन शुक्ला ने बताया कि रविवार की रात लगभग दो बजकर तीस मिनट पर वह अपने परिवार समेत मकान खाली कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचे। पानी बढ़ने की वजह से केवल रसोई का सामान ही अपने स्थान ला पाए।
फिर हम निकले आर्मी बैंड की ओर। यहां से अलकनंदा-मंदाकिनी के संगम स्थल का नजारा देख हमारी आंखें फटी की फटी रह गई। नदी का पानी चंडिका मंदिर को छू रहा था। माई की मंडी पैदल पुल का कहीं अता-पता नहीं था। पेड़, वाहनोें के टायर कल-पुर्जे, गैस सिलेंडर, घरों का सामान और पानी के बर्तन संगम पर इकट्ठा हो गए हैं। ऐसे हालातों में जब लोग जाने बचाने को सुरक्षित स्थान पर जा रहे हैं, तो कुछ दुस्साहसी लोग माई की मंडी और मंदिर में फंदा बनाकर गैस सिलेंडर निकाल रहे हैं। वे कई सिलेंडर निकाल लेते हैं। लेकिन इसी बीच अचानक पैदल मार्ग नदी में समा गया। ये लोग बमुश्किल दूसरी ओर निकल पाए। हमने सोचा कि शायद अब ये मान जाएंगे। पर वह फिर भी अपने हरकतों से बाज नहीं आए।
हालातों की जानकारी लेने को हम गेस्ट हाउस में डीएम विजय ढौंडियाल से मिले। वह फोन से लगातार अधीनस्थों सहित उच्चाधिकारियों के संपर्क में है। वह बताते हैं कि केदारनाथ, रामबाड़ा और गौरीकुंड संचार संपर्क भी भंग होने से वास्तविक स्थिति का अंदाजा नहीं लग पा रहा है। सेना और आईटीबी की टीम तैयार है, पर जगह-जगह सड़क टूटने और पुल बहने के कारण वह आगे नहीं बढ़ पा रही है। इसके बाद श्रीनगर की ओर बढ़ते हैं तो यहां पुलिस बैरियर के नीचे बाईपास का वैलीब्रिज का नामोनिशान नहीं दिखता। इसी बीच सूचना मिलती है कि केदारनाथ पुल भी खतरे की जद में हैं। हम फिर वहीं पहुंच जाते हैं। अब की बार पानी पुल से करीब एक-दो फुट नीचे आ गया है। पुल का एक ओर का पुश्ता ढह जाने पर पुलिस ने इस पर आवाजाही बंद कर दी। अब हम इसे पार कर शहर के दूसरी ओर भी नहीं जा सकते थे। यहां तमाशबीनों की भीड़ जुटी है। जल निगम के जेई पीएस पयाल से बात होती है तो वह बताते हैं कि उनके ऑफिस के कागजात भी नदी में बह गए हैं।
इसी बीच देहरादून से किसी सज्जन का फोन आता है कि उनका गांव चंद्रापुरी में पड़ता है। गांव में मंदाकिनी नदी के पानी पहुंचने पर लोग पहाड़ी पर ऊपर चढ़ गए हैं। जान तो बच गई, पर अब बच्चों के लिए दूध कहां से लाएंगे। वह गुहार लगाते हैं कि किसी प्रकार लोगों तक खाना पहुंच जाए। अचानक गुजरते हुए व्यापारी सुरेश काला से मुलाकात होती है। वह बताते हैं कि 1978 में बेलाकूची की बाढ़ में भी ऐसा पानी नहीं आया था। फिर एसपी ऑफिस पहुंचे तो एसपी बरिंदर जीत सिंह बताते हैं कि एयरफोर्स बेस पर चॉपर तैयार हैं, पर मौसम साथ नहीं दे रहा है। ढाई बजे डा. जैक्सवीन नेशनल स्कूल गुप्तकाशी के चेयरमैन लखपत राणा से फोन के जरिये बात होती है, वह बताते हैं कि करीब डेढ़ सौ लोगों के रहने की रहने-खाने की व्यवस्था स्कूल में की गई है।
फिर फोन की घंटी बजती है, तो दूसरी ओर से ग्राम प्रधान स्यूंड विनोद डिमरी की आवाज सुनाई देती है। वह बताते हैैं कि बसुकेदार से किसी तरह चंद्रापुरी पहुंचा हूं। लेकिन यहां तो 500 मीटर केदारनाथ नेशनल हाईवे पानी में डूबा हुआ है। चंद्रापुरी बाजार दिखाई नहीं दे रहा है। सुमाड़ी से किसी मित्र का फोन आता है, वह बताते हैं कि नौला पानी में भी राष्ट्रीय राजमार्ग डूबा हुआ है। तिलवाड़ा-सुमाड़ी मोटर पुल के ऊपर से पानी गुजर रहा है। उनको रुद्रप्रयाग आना था, पर वह आ नहीं पा रहा है।

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