विश्वविद्यालयों में तय होगी स्कूली शिक्षा की नीति

इलाहाबाद। बच्चे स्कूल क्यों नहीं जा रहे, वे क्या पढ़ें, शिक्षा को रुचिकर कैसे बनाया जाए आदि का जवाब अब विश्वविद्यालय के शिक्षक और शोधार्थी ढूंढ़ेंगे। स्कूली और माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। हर मंच से यह आवाज उठने लगी है कि जब नींव ही कमजोर है तो उच्च शिक्षा कैसे ठीक हो सकती है। इसके मद्देनजर स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए की जा रही कवायद में विश्वविद्यालयों को भी शामिल कर लिया गया है। मानव संसाधन मंत्रालय तथा यूजीसी की पहल पर शिक्षाशास्त्र विभाग की ओर से इस मकसद से राष्ट्रीय स्तर पर शोध का निर्णय लिया गया है। स्कूली व्यवस्था के बारे में जानने के लिए प्रधानाचायों, शिक्षकों के साथ बैठकों का दौर भी शुरू हो गया है।
स्कूली और माध्यमिक शिक्षा में सुधार के लिए कई उठाए गए हैं लेकिन अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाया। खासतौर पर ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था की हालत काफी खस्ताहाल है। इसके पीछे दूर-दराज के गांवों की स्थिति का सही आकलन नहीं हो पाने को भी एक प्रमुख कारण माना जा रहा है। इसके मद्देनजर किसी भी निर्णय से पहले ऐसे क्षेत्रों तक पहुंचने तथा वहां की स्थिति की अलग-अलग पहलुओं से अध्ययन की नीति बनाई गई है। इसी के मद्देनजर सभी बिंदुओं को ध्यान में रखकर विश्वविद्यालयों से शोध प्रस्ताव मांगे गए हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पीआरओ तथा शिक्षाशास्त्र विभाग के प्रोफेसर पीके साहू ने बताया कि इसी के तहत प्रधानाचार्यों और शिक्षकों की बैठकें बुलाई गईं। इसका मकसद उनकी जरूरतों, मुश्किलों आदि पर फीडबैक लिया जाना है। इसके अलावा छात्र-छात्राएं स्कूलों में जाकर विद्यार्थियों से भी जानकारी इकट्ठा करेंगे।

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