राष्ट्रीय चैंपियन बेच रही है पॉलीथिन बैग

बैंगलोर: खेलों में अव्वल रहने वाले और ढेरों मेडल जीतने वाले खिलाडिय़ों का भारत में बेहद बुरा हाल है। ये लोग गरीबी और मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं। हमारे देश में सिर्फ क्रिकेट और क्रिकेटरों को ही लोगों और सरकार की तरफ से शाबाशी और करोड़ों के ईनाम मिलते हैं। यही नहीं विज्ञापनों के माध्यम से भी वे करोड़ों रुपए कमाते हैं।

लेकिन इसी मुल्क में अन्य बहुत से खेल और खिलाड़ी ऐसे भी हैं जिनकी ओर न तो सरकार ही ध्यान देती है और न ही कोई स्वयं सेवी संगठन ही। वे देश का नाम रोशन करने के बावजूद तंगहाली में जिंदगी जीने को मजबूर हैं। एक जमाने में देश की जानी मानी पावर लिफ्टर खिलाड़ी रही गीताबाई आज गरीबी में दिन काट रही हैं। पावर लिफ्टिंग की राष्ट्रीय चैंपियन रही गीता ने अलग-अलग राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 3 गोल्ड, 11 सिल्वर और 16 ब्रॉन्ज मेडल जीते हैं, लेकिन आज गीताबाई मैंगलोर के मछली मार्केट में पॉलीथिन बैग बेच कर अपना गुजारा कर रही हैं।

न तो सरकार और न ही स्थानीय लोगों ने इसकी ओर ध्यान दिया। पूर्व एथलीट गीता बाई का कहना है कि मैं कर्नाटक की सबसे बेहतरीन खिलाड़ी थी। मैं बस इतना चाहती हूं कि सरकार मुझे नौकरी दे। अगर सरकार ने ऐसा नहीं किया तो शायद इसी गरीबी में मैं मर जाऊंगी। मेरे जैसे कई ऐसे खिलाड़ी गांव में रहते हैं सरकार को उनकी तरफ तवज्जो देनी चाहिए। कुछ दिन पहले तमिलनाडु की एथलीट संथी सौंदराजन के बारे में भी ऐसी ही खबर आई थी। 11 अंतरराष्ट्रीय और 50 राष्ट्रीय मेडल जीत चुकी संथी पत्थर की खान में काम कर अपना पेट पाल रही है।

पूर्व एथलीटों की शिकायत है कि सरकार सिर्फ उन्हीं खिलाडिय़ों पर ध्यान देती है जो ओलंपिक या एशियन गेम्स में नाम कमाते हैं। अगर सरकार ने गीता की मदद नहीं की तो उसकी मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। कर्नाटक की गीता बाई हो या तमिलनाडु की मशहूर एथलीट संथी सौंदराजन, हमने हमेशा देखा है राज्य सरकारे या फिर केंद्रीय सरकार ऐसे एथलीट्स को नजर अंदाज करती है। पर अब वक्त आ गया है की सरकार को एक नोश्नल स्पोट्र्स पॉलिसी बनानी चाहिए ताकि गीता जैसे हजारों खिलाडियों को सड़क पर इस तरह से अपनी जिंदगी नहीं बितानी पड़े।

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