यूपी के एथलीट दूसरे राज्यों में पलायन को मजबूर

गोरखपुर। महाराष्ट्र में उत्तर प्रदेश और दूसरे प्रदेशों के एथलीटों को वाजिब सम्मान मिलता है, जबकि अपने यूपी में मेडल जीतने के बाद भी लोग पहचानने से इंकार कर देते हैं। इस वजह से आज उत्तर प्रदेश के एथलीट दूसरे प्रदेशों को पलायन करने को मजबूर हैं। ये एथलीट दूसरे प्रदेशों के लिए खेलकर उनके लिए मेडल जीत रहे हैं। उम्मीद है कि अगले बीजिंग ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन बेहतरीन होगा।
ये बातें ओलंपियन और अर्जुन एवार्डी सुधा सिंह ने एक बातचीत के दौरान कहीं। हाल में संपन्न लंदन ओलंपिक से लौटीं सुधा ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि विदेशी और भारतीय खिलाड़ियों के स्टेमिना में उतना ज्यादा अंतर नहीं है, जितना प्रचारित किया जाता है। असली बात यह है हम मेडल जीतने से मात्र कुछ ही कदम दूर रहते हैं। ऐसा इसलिए है कि हमारे यहां खेलने की शुरुआत देर से होती है। विदेशों में पांच साल में बच्चे अच्छे एथलीट बन जाते हैं जबकि हमारे देश में शुरुआत ही 14-15 साल के होने पर होती है। विदेशों में अगले ओलंपिक के लिए अभी से तैयारियां शुरू हो गई हैं। जबकि हमारे यहां ओलंपिक शुरू होने से छह महीने पहले तैयारियां शुरू करने का चलन है। देश में महिला एथलीटों की कम संख्या के सवाल पर सुधा ने बताया कि इसके लिए जिम्मेदार हमारी खेल नीति है। उत्तर प्रदेश में देखें यहां एथलेटिक्स का मात्र एक हॉस्टल है। जब तक खिलाड़ियों में प्रतिस्पर्धा नहीं होगी, मेडल मिलना मुश्किल है। अंतरराष्ट्रीय लेवल पर मेडल जीतना है तो खिलाड़ियों में प्रतिस्पर्धा की जबरदस्त भावना को पैदा करना होगा और अच्छे कोच तैयार करने होंगे। सुधा ने बताया कि मैं ओलंपिक से आने के बाद अब एशियन चैंपियनशिप और वर्ल्ड चैंपियनशिप की तैयारी में लग गई हूं।

सही उम्र में दौड़ें मैराथन
पूर्वांचल के धावक छोटी उम्र में मैराथन में हिस्सा लेने लग रहे हैं। जिसके कारण वह एक से दो साल दौड़ने के बाद वह किसी काम लायक नहीं रह रहे है। छोटी उम्र में मैराथन दौड़ने से शरीर का संतुलन गड़बड़ हो जाता है। मैराथन में 24-25 की उम्र में दौड़ना चाहिए।

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