नई दिल्ली। दिल्ली के उत्तरी जिला इलाके में राजस्व विभाग की स्पेशल टास्क फोर्स ने बुधवार को 58 बाल श्रमिकों को मुक्त कराया। सभी बाल श्रमिक चार अलग-अलग फैक्ट्रियों में काम करते थे। सभी फैक्ट्री मालिकों के खिलाफ चाइल्ड लेबर एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है। अलीपुर सब डिवीजन के समयपुर बादली इलाके में इलेक्ट्रिक पंखे और कूलर बनाने वाली फैक्ट्रियां हैं। पुलिस को सूचना मिली थी कि इन इलाकों की फैक्ट्रियों में बंधुआ बाल मजदूरों से काम कराया जाता था। राजस्व विभाग की स्पेशल टास्क फोर्स ने एसडीएम के नेतृत्व में फैक्ट्रियों में छापेमारी की। चार फैक्ट्रियां ऐसी मिली जहां पर नाबालिग बच्चे काम करते पाए गए। सभी बच्चों को एसडीएम ने अपनी कस्टडी में लेकर जिले की चाइल्ड वेलफेयर कमेटी को सौंप दिया है। एसडीएम रजनीश कुमार सिंह के मुताबिक सभी बच्चे बिहार, झारखंड और यूपी के रहने वाले हैं। मेडिकल के बाद सभी बच्चों को उनके परिवार को सुपुर्द कर दिया जाएगा। एसडीएम ने बताया कि चारों फैक्ट्री मालिक के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है। जांच चल रही है फिलहाल फैक्ट्री मालिकों को 5000 रुपये प्रति बच्चे के हिसाब से मुआवजा देना होगा। आगे की कार्रवाई जांच के बाद की जाएगी।
बालश्रम पर निगरानी पड़ी सुस्त
नई दिल्ली। क्या बीते पांच सालों में राजधानी में एक भी बालश्रम करता मासूम नहीं छुड़ाया गया? जी हां, यह हम नहीं बल्कि श्रम मंत्रालय की ओर से उपलब्ध दिए गए आंकड़े कह रहे हैं। दिल्ली ही नहीं उत्तराखंड, पंजाब, चंडीगढ़ और राजस्थान में भी यही हालात हैं। जबकि यूपी में महज 21, गुजरात में 12 बाल मजदूर छुड़ाए गए। ये आंकड़े सूचना के अधिकार के तहत श्रम मंत्रालय ने दिए है। गौरतलब है की 10 अक्तूबर 2006 से देश में बालश्रम कराने पर रोक है। इसी संबंध में आरटीआई दाखिल कर श्रम मंत्रालय से बीते 5 साल (2008 से 2012) देशभर में राज्यवार छुड़ाए गए बालश्रमिकों की संख्या, काम कराने वाले दोषियों की संख्या और कितने लोगों को सजा हुई जानकारी मांगी गई थी। श्रम मंत्रालय के पास दिल्ली की जानकारी नहीं है। बिहार में बीते पांच सालों में 91 बाल मजदूर मिले, वहीं चंडीगढ़ में कोई भी बाल श्रमिक नहीं मिला। इसी तरह यूपी में पांच सालों में 2008 से 2012 के बीत महज 21 और महाराष्ट्र में महज 17 बाल मजदूर छुड़ाए गए। इस संबंध में बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था एक्शन एड इंडिया की कार्यक्रम निदेशक सहजो सिंह कहती हैं कि यह स्थिति चिंताजनक है। एक तरफ सरकार बाल मजदूरी कानून में संशोधन कर रही है, वहीं दूसरी तरफ मौजूदा कानून को लागू करने में सुस्त है। उनके मुताबिक इस काम में अधिकारियों की जवाबदेही तय होनी चाहिए।