
नई दिल्ली। डेमेक्स मॉकड्रिल के दौरान अस्पतालों में पर्यवेक्षकों के रूप में तैनात डॉक्टरों ने सुश्रुत ट्रामा सेंटर की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया है। उनके मुताबिक अस्पताल में काफी इमरजेंसी केस आते हैं लेकिन मॉकड्रिल के दौरान आए मरीजों पर स्टाफ ने योजना को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया।
डीडीएमए ने मॉकड्रिल के दौरान अस्पतालों में डॉक्टरों को पर्यवेक्षक के रूप में तैनात किया था। उन्हीं डॉक्टरों की टीम ने बुधवार को विवेक विहार में यमुना विहार स्पोर्ट्स कांप्लेक्स में रिपोर्ट दी। ज्यादातर अस्पताल के पर्यवेक्षकों ने सुविधाएं होने के बाद भी बेहतर इलाज न करने का आरोप लगाया है। ट्रामा सेंटर में डॉ. पुनीत भगत, डॉ. टीके दास व डॉ. कोले की पर्यवेक्षक के रूप में मौजूद थे। मॉकड्रिल ट्रामा सेंटर में ऑक्सीजन न मिलने से हुई चार मौतों के बाद हुई थी। इसके बाद भी वहां के स्टाफ की जो रिपोर्ट पर्यवेक्षकों ने दी वह चौंकाने वाली थी।
पर्यवेक्षकों के मुताबिक, अस्पताल में पर्याप्त सुविधा है। वहां 49 बेड मौजूद हैं। मॉकड्रिल के दौरान कुल 41 पीड़ित पहुंचे लेकिन इस दौरान अस्पताल के स्टाफ ने इमरजेंसी प्लान को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया। आपातकाल के दौरान गंभीर रोगियों को वरीयता के आधार पर नहीं लिया। पैरा-मेडिकल स्टाफ का रवैया पीड़ितों को अनदेखा करने जैसा था। दूसरों अस्पतालों के हालात भी बहुत अच्छे नहीं थे। डॉ. हेडगेवार अस्पताल के पर्यवेक्षक ने बताया कि वहां गंभीर रोगियों का निर्धारण करने के लिए कोई अधिकारी नहीं था। सभी अस्पतालों में ज्यादातर मरीज पीसीआर वैन में पहुंचे। भीड़ प्रबंधन फेल रहा। पर्यवेक्षकों ने मॉकड्रिल के दौरान अस्पतालों के हालात को देखकर कहा कि दिल्ली के अस्पतालों के लिए अलग से इमरजेंसी मैनेजमेंट सिस्टम की जरूरत है।