जब मुखिया की बस्ती ही ऐसी तो जनता कहे किससे

रामनगर। सरकारी अनुदान बढ़ने के बावजूद नगरपालिका प्रशासन अपने संसाधन बढ़ाने में नाकाम रहा है। इसका सीधा असर इस शहर की खूबसूरती पर कूड़े के धब्बे के रूप में पड़ा है। कूड़ा ढोने वाले वाहनों की कमी है तो सफाई कर्मी भी मानक से आधे। पालिकाध्यक्ष के घर का कोना ही नहीं, बल्कि शहर के अधिकांश स्कूल, चौराहों पर गंदगी के ढेर लगे हैं।
नगर निकायों में दस हजार की आबादी पर 28 स्वच्छकों की नियुक्ति का मानक है। इसके सापेक्ष यहां 50 हजार से अधिक की आबादी के लिए करीब 150 स्वच्छक होने चाहिए, लेकिन इसके बावजूद यहां सिर्फ 87 स्वच्छक कार्यरत हैं। इनमें से भी 32 स्वच्छक अस्थायी हैं। वार्ड स्वच्छता समितियों के माध्यम से उन्हें मात्र तीन हजार रुपए का मासिक मानदेय मुश्किल से मिलता है। यह स्वच्छक सभी गलियों में तड़के झाडू लगाकर कूड़े के ढेर लगाते हैं। जिन्हें वाहनों में भरकर ढोने के लिए सिर्फ तीन वाहन हैं।
वहीं 15 में से आठ वार्डों में घर-घर जाकर कूड़ा लिया जा रहा है। इसके तहत प्रतिमाह शहर से बटोरा गया छह कुंतल प्लास्टिक का कचरा हल्द्वानी के रिसाइकिलिंग प्लांट भेजा जाता है। इस सब के बाद भी यहां अधिकांश स्कूलों, धर्मशालाओं, रोडवेज परिसर समेत मुख्य चौराहों पर कूड़े के ढेर जमा रहते हैं। नालियों की सफाई नहीं हो पाती और दुर्गंध का प्रकोप बना रहता है। ऐसी गंदगी से संक्रामक रोग भी फैल रहे हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग से नगर पालिकाध्यक्ष हाजी मो. अकरम के घर को जाने वाली सड़क के कोने में भी हर वक्त कूड़ा बिखरा रहता है और यह कूड़ा शहर की शान पर कलंक है। दो बार पालिकाध्यक्ष चुने जाने के बाद भी हाजी मो. अकरम के सामने अपने ही घर को साफ रखना चुनौती बना है। इधर, अधिशासी अधिकारी मनोज दास का कहना है कि शीघ्र दो अन्य वार्डों में भी घर-घर जाकर कूड़ा उठाया जाएगा। इसकी ढुलाई के लिए दो टेंपो, एक कैंटर, एक ट्रैक्टर ट्राली खरीदने की योजना है।

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