एक आरटीआई से दिखे सरकारी सिस्टम के कई छेद

नई दिल्ली। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दाखिल एक आवेदन ने सरकारी व्यवस्था के कई छेद दिखाए हैं। राजधानी में अधिकारी सूचना देने के बजाय सशक्त अधिकार को आवेदन ट्रांसफर करके आवेदक को उलझा रहे हैं, ताकि अपील की तारीख भी वह भूल जाए। विभाग में दाखिल एक आवेदन के जवाब में 50 दिन में 80 जवाबी चिट्ठी आवेदक को मिल चुकी हैं। अभी रोजाना 4-5 चिट्ठी आ रही हैं, लेकिन अब भी सभी सवालों के जवाब नहीं मिले हैं।
दिल्ली के शहरी विकास विभाग से सीधे तौर पर संबंधित दायर की गई इस आरटीआई की जवाबी चिट्ठियां दिल्ली सरकार के साथ ही डाक विभाग की बड़ी लापरवाही भी सामने लाई हैं। जो चिट्ठियां मिली हैं, उसमें 11 फीसदी (9 चिट्ठी) ऐसी हैं, जिन पर डाक कर्मी मुहर लगाना भूल गए। बिना मुहर के डाक टिकटों की कीमत 139 रुपये है। आवेदक ने आरटीआई आवेदन पर 10 रुपये खर्च किए थे, लेकिन उसे 19 रुपये के सामान्य चिट्ठी टिकट के साथ 120 रुपये की शासकीय टिकट फ्री में मिले हैं।
शहरी विकास विभाग से सीधेे तौर पर संबंधित इस सवाल को पीडब्ल्यूडी, एमसीडी, एनडीएमसी, बाढ़ व सिंचाई नियंत्रण विभाग, दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड समेत कुछ अन्य विभागों को ट्रांसफर किया गया। इन विभागों ने अपनी निचली शाखाओं में इसे ट्रांसफर कर दिया। आवेदन 14 मई को दिल्ली सचिवालय स्थित शहरी विकास विभाग में दाखिल किया गया था। इसका जवाब जून के पहले हफ्ते में आना शुरू हुआ तो चिट्ठियों की झड़ी सी लग गई।

चिट्ठी भेजने में 1200 रुपये से अधिक खर्च
दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागों सेे आवेदन के जवाब में मिली 80 चिट्ठियों से यह बात सामने आई है कि उन्हें भेजने में सरकार के 1,200 रुपये से अधिक खर्च हो चुके हैं। सभी चिट्ठी या तो रजिस्टर्ड पोस्ट से आई हैं या फिर स्पीड पोस्ट से।

एक दर्जन से भी कम चिट्ठियों में है कुछ जवाब
विभागों की तरफ से मिली 80 में से एक दर्जन से भी कम चिट्ठियां ऐसी हैं, जिसमें पूछे गए सवाल के कुछ आधे-अधूरे जवाब हैं। बाकी चिट्ठियां आरटीआई एक्ट- 2005 के सेक्शन 6(3) के तहत ट्रांसफर करने की सूचना दी गई है।

सरकारी कर्मियो के कई दिन हुए होंगे खराब
आरटीआई के जवाब में जो चिट्ठियां मिली हैं उसे तैयार करने की फाइल बनाने, ट्रांसफर करने, संबंधित अधिकारियों के हस्ताक्षर कराने और पोस्ट तक पहुंचाने में सरकारी कर्मियों के कई दिन बर्बाद हो गए होंगे। इतना ही नहीं प्रत्येक कार्यालय में अलग-अलग फाइल बनाने व संभालकर रखने में भी समय लगा होगा।

‘आरटीआई का जवाब रोकना अधिकारियों ने सीख लिया है। घुमाकर जवाब देते हैं। गलत गतिविधि का खुलासा करने पर चुप कराने की कोशिश करते हैं। दो अपील के बावजूद जवाब नहीं मिलता, लेकिन निजी स्वार्थ न होने व पैसे की कमी में सभी कार्यकर्ता कोर्ट नहीं जा सकते।’
– एजाजुल हसन, आरटीआई व सामाजिक कार्यकर्ता।

‘आरटीआई के एक आवेदन के जवाब में इतनी चिट्ठियां चौंकाने वाली हैं। विभाग के सचिव को मामले की जांच करके सही तरीके से आवेदन को जवाब देने की प्रक्रिया के संदर्भ में आदेश जारी करने को कहा जाएगा।’
– डीएम स्पोलिया, दिल्ली के मुख्य सचिव

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