यूरोपियन तकनीक से होगी होप्स की खेती!

केलांग। विलुप्त हो रहे औषधीय पौधे होप्स की खेती को बचाने की दिशा में राज्य सरकार ने प्रयास तेज कर दिए हैं। राज्य सरकार ने इसकी खेती को व्यापक स्तर पर बढ़ाने के लिए एक मास्टर प्लान तैयार किया है। इसे मंजूरी के लिए जल्द ही केंद्र सरकार को भेजा जाएगा।
लाहौल घाटी देश का फिलहाल ऐसा इकलौता क्षेत्र हैं जहां होप्स की खेती की जा रही है। प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव की देखरेख में एक कमेटी इस परियोजना पर काम कर रही है। केंद्र सरकार से इस परियोजना को मंजूरी मिलने के बाद लाहौल घाटी में भी परंपरागत खेती के बजाए यूरोपियन देशों की तकनीक पर होप्स की खेती की शुरुआत हो सकेगी।
होप्स में एल्फा एसिड की मात्रा बढ़ाने के लिए राज्य सरकार जर्मन होप्स के सीड आयात कर इसे लाहौल घाटी में तैयार करने की योजना बना रही है। शोध में पाया गया है कि लोकल वैरायटी से तैयार होने वालीहोप्स में महज पांच फीसदी एल्फा एसिड पाया गया है। जर्मन होप्स में इसकी मात्रा सत्तर फीसदी तक मौजूद है। लाहौली होप्स को अभी तक फूल के साथ ही कंपनियों को बेचा जाता है। यूरोपियन तकनीक अपनाने के बाद होप्स प्रोसेसिंग यूनिट में हीफूल से एल्फा एसिड को अलग किया जाएगा। लाहौल में फिलहाल जम्मू में तैयार की गई हरमुख हाईब्रिड वैरायटी कटिंग से होप्स तैयार की जा रही है। वीरवार को शिमला में मुख्य अतिरिक्त सचिव पीसी कपूर के साथ लाहौल स्पीति के विधायक रवि ठाकुर और लाहौल होप्स सोसाइटी के अध्यक्ष चरणदास भट्ट के बीच हुई बैठक में इस परियोजना पर चर्चा की हुई। बागवानी विभाग के सचिव का जिमा देख रहे पीसी कपूर ने इसकी पुष्टि की है। होप्स से तैयार होने वाली एल्फा एसिड बीयर में फ्लेवर और स्टेबलेटी एजेंट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। होप्स का प्रयोग अन्य वेवरेजिज के अलावा आयुर्वेदिक दवाईयों में भी होता है।

Related posts