
बागेश्वर। नवजात शिशु के नामकरण के मौके पर उसे वस्त्र और शैय्या सहित तमाम वस्तुएं भेंट करने की अनूठी परंपरा आज भी जारी है। खासकर नवजात के ननिहाल की रिश्तेदारी की सभी महिलाएं रिंगाल की डलिया, वस्त्र, आभूषण आदि रखकर सज धज कर शिशु के घर जाती हैं और दीर्घायु के आशीर्वाद के साथ उसे वस्तुएं भेंट करती हैं।
आज के युग में नवजात शिशु की नानी, आधुनिक झूला, महंगा बेबी पाउडर, डाबर लाल तेल लेकर उसके नामकरण में जाती है। इसके अलावा रिश्तेदार भी जाते हैं। लेकिन बागेश्वर में आज भी नामकरण में उपहार देने की पुरानी परंपरा देखी जा सकती है। जिले के विभिन्न क्षेत्रोें में क्षत्रिय परिवारों में आज भी नवजात शिशु के नामकरण पर नानी सहित अन्य रिश्तेदार रिंगाल की डलिया, पालना लेकर वहां पहुंचते हैं। रिंगाल की डलिया में बच्चे के पांच कपड़े, बिस्तर, चांदी के धागुले आदि होते हैं। इसके अलावा बच्चे की मालिश के लिए घर में बनाया गया सरसों का तेल भी होता है। उनका मानना है कि सरसाें के तेल की मालिश से हड्डियां मजबूत होती हैं। नवजात बच्चे की खुश्की को निकालने के लिए आटे की लोई को तेल में भिगोकर मालिश की जाती है। महिलाएं इसे बेहतरीन उपाय मानती हैं। बच्चे के अलावा जननी की भी फ्रिक महिलाओं में होती है। जच्चे के लिए पंजीरी की भी सामग्री डलिया में होती है। जो उसेे दी जाती है। नवजात शिशु के ननिहाल से महिलाएं सामूहिक रूप से सज-धज कर जाती हैं। इन महिलाओं का टीका भी पारंपरिक ढंग से होता है। नवजात की नानी, मौसी, मामी आदि नामकरण संस्कार में शामिल होती हैं। बच्चे को आशीर्वाद देकर अपने घरों को लौटती हैं। नवजात बच्चे के माता-पिता उन्हें भोज कराकर अपनी सामर्थ्य अनुसार टीका भेंट करते हैं