ज्योतिषपीठ के उत्तराधिकार पर छह दशकों से विवाद

इलाहाबाद। ज्योतिषपीठ बद्रिकाश्रम हिमालय के शंकराचार्य की गद्दी को लेकर छिड़ी जंग पिछले 60 सालों से जारी है। शंकराचार्य की गद्दी पर दावेदारी को लेकर मौजूदा शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानपंद और स्वामी वासुदेवानंद पिछले 23 सालों से अदालत में आमने-सामने हैं। दोनों के अपने-अपने तर्क हैं, पर असल विवाद की जड़ पीठ के संस्थापक स्वामी ब्रहानंद की वह वसीयत है जिसे उन्होंने अपने अंतिम दिनों में लिखा था। एक पक्ष वसीयत को फर्जी बता रहा है, जबकि दूसरा पक्ष (वासुदेवानंद) स्वामी स्वरूपानंद के गद्दी धारण करने को गलत ठहरा रहा है। फिलहाल पिछले पांच वर्षों से सिविल जज का न्यायालय इस विवाद को रोज सुन रहा है। इस क्रम में नरेंद्रानंद की गवाही सोमवार को होनी है।
सिविल कोर्ट में दाखिल स्वामी स्वरूपानंद की याचिका के मुताबिक लगभग 165 वर्षों तक शंकराचार्य विहीन रहने के बाद 11 मई 1941 को ज्योतिष्पीठ पर स्वामी ब्रह्मानंद शंकराचार्य बने। 20 मई 1953 को उनकी मृत्यु के बाद ही उनके उत्तराधिकारी को लेकर विवाद छिड़ गया। ब्रहानंद की एक वसीयत पेश की गई जिसके मुताबिक उन्होंने उत्तराधिकारी के तौर पर स्वामी शांतानंद, द्वारिका प्रसाद शास्त्री, स्वामी विष्णुदेवानंद और स्वामी परमानंद का नाम प्रस्तावित किया था। परंतु विद्वत जनों द्वारा इनमें से किसी को मान्यता नहीं मिली। ज्योतिषपीठ पर तत्कालीन विद्वानों और अन्य तीनों पीठ के शंकराचार्यो ने 18 मई 1952 को स्वामी कृष्णबोधाश्रम को मान्यता दे दी। पीठ का मूृल विवाद इसके बाद ही अदालतों में पहुंच गया था। ज्योतिष्पीठ अनुयायियों में दो गुट हो गए और एक ने स्वामीशांतानंद को मान्यता दी। बाद में शांतानंद के उत्तराधिकारी विष्णुदेवानंद और फिर वासुदेवानंद बने। उधर कृष्णबोधाश्रम की मृत्यु के बाद 1973 में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती शंकराचार्य बने। स्वरूपानंद ने 15 नवंबर 1989 को सिविल कोर्ट में मुकदमा दाखिल कर वासुदेवानंद के शंकराचार्य पद पर आसीन होने को चुनौती दी। स्वरूपानंद द्वारा सीपीसी की धारा छह (ग) पर 22 फरवरी 1999 को तत्कालीन एसीजेएम मृदुलेश कुमार सिंह ने अस्थायी निषाज्ञा जारी करते हुए वासुदेवानंद सरस्वती द्वारा छत्र, दंड और मुकुट धारण करने पर रोक लगा दी। इस आदेश के खिलाफ वासुदेवानंद की अपील एडीजे अरविंद कुमार त्रिपाठी ने 27 अप्रैल 2000 को खारिज कर दी। इस दौरान मामला सुप्रीमकोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीमकोर्ट के निर्देश पर सिविल जज की अदालत में इसकी प्रतिदिन सुनवाई चल रही है। स्वामी स्वरूपानंद और स्वामी वासुदेवानंद अपनी गवाही दे चुके हैं। सोमवार को इस मामले पर स्वामी नरेंद्रानंद गवाही होनी है।

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