राजनीति में न स्थाई दोस्ती न स्थाई दुश्मनी बस अपने हितो को साधने का मौका नेता लोग तलाश करते रहते है । ऐसा दौर शुरू है कि नेता पार्टी के बिना रह सकते है पर कुर्सी के बिना नहीं रहना चाहते । इसलिए एक पार्टी छोड़ दूसरी में संभावना तलाशने कि आवाजाही लगी रहती है । चुनाव के दंगल में गुटबाजी के चलते कांग्रेस हरियाणा में अपने योद्धा मैदान में नहीं उतार पाई है, वहीं भाजपा के प्रत्याशी भी गुटबाजी के चलते उलझ गए हैं। आधी सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों को स्थानीय नेताओं और उनके समर्थकों के भितरघात की आशंका है।
अंबाला में सांसद रतन लाल कटारिया के निधन के बाद सहानुभूति के तौर पर उनकी पत्नी बंतो कटारिया को मैदान में उतारा गया है। इन छह सीटों पर ही अंदरखाने विरोध या फिर खुलकर साथ नहीं देने की आशंका है। भाजपा की ओर से कराए गए सर्वे में भी यह बात सामने आ रही है।
हालांकि, भाजपा के प्रवक्ता रहे सुदेश कटारिया का कहना है कि िभतरघात शब्द कांग्रेस का है और यह कांग्रेस में ही चलता है। भाजपा अनुशासित पार्टी है। पार्टी या किसी भी प्रत्याशी को भितरघात का खतरा नहीं है।