कांग्रेस – भाजपा को घेरेंगे बागवान, न छोटे कोल्ड स्टोर मिले न विदेशी सेब पर लगा 100 फीसदी आयात शुल्क

कांग्रेस – भाजपा को घेरेंगे बागवान, न  छोटे कोल्ड स्टोर मिले न विदेशी सेब पर लगा 100 फीसदी आयात शुल्क

शिमला
हिमाचल प्रदेश में 5,000 करोड़ की सालाना सेब अर्थव्यवस्था पर संकट छाया हुआ है। सत्ता में कोई भी सरकार रही हो लेकिन बागवानों को उपेक्षा का दंश झेलना पड़ा है। कांग्रेस और भाजपा के सत्ता पर रहते हुए विदेशी सेब पर आयात शुल्क 100 फीसदी लगाने की मांग प्रदेश के बागवान प्रमुखता से करते रहे हैं लेकिन सुनवाई आज दिन तक नहीं हुई। कश्मीर की तर्ज पर हिमाचली सेब को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी नहीं मिला है। बागवानों को उनको बगीचों के पास न तो छोटे कोल्ड स्टोर मिले और न ही छोटी विधायन यूनिटें स्थापित हो सकीं। हर साल सस्ते कार्टन और पैकिंग सामग्री का मामला गर्माता रहा है, बागवानों को ज्यादा राहत नहीं मिली। कार्टन पर 18 फीसदी जीएसटी और यूनिवर्सल कार्टन का मसले ठंडे बस्ते में पड़ने से बागवान मंडियों में आर्थिक शोषण के शिकार होते रहे हैं।

विदेशी सेब के आगे फीका पड़ने लगा हिमाचली सेब
प्रदेश की 5,000 करोड़ की सेब अर्थव्यवस्था पर सबसे ज्यादा मार विदेशी सेब की देश की मंडियों में धमक से पड़ी है। पहले कांग्रेस और फिर भाजपा सरकार से मामला उठाया जाता रहा है कि विदेशी सेब पर आयात शुल्क शत प्रतिशत लगाया जाए। वर्तमान में विदेशी सेब पर पचास फीसदी आयात शुल्क है और हिमाचली सेब बाजार प्रतिस्पर्धा में कड़ा मुकाबला नहीं कर पारहा। विदेशी सेब पर आज दिन तक आयात शुल्क 100 प्रतिशत नहीं किया जा सका।

कश्मीर की तर्ज पर नहीं मिला सेब को एमएसपी
पहाड़ी राज्य हिमाचल के सेब बागवानों को भी ए, बी और सी ग्रेड के सेब का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) कश्मीर के सेब की तर्ज पर दिए जाने की मांग पर आज तक अमल नहीं हुआ। कश्मीर में ए ग्रेड के सेब को 60 रुपये, बी ग्रेड को 40 और सी ग्रेड को 26 रुपये प्रति किलो एमएसपी दिया जाता है। प्रदेश मे सिर्फ सी ग्रेड के सेब को समर्थन मूल्य 10.50 रुपये प्रति किलो दिया जा रहा है। ए और बी ग्रेड के सेब की बिक्री बागवानों को बिचौलियों के तय दाम पर करनी पड़ रही है।

हिमाचल में कोल्ड स्टोर बने न प्रोसेसिंग यूनिट लगीं
प्रदेश में सेब बागवानों को सुविधा के लिए छोटे कोल्ड स्टोर और विधायन इकाइयां स्थापित करने का मामला लंबे समय से उठता रहा है। बागवानों को यह सुविधा न मिलने से मंडियों में सेब की फसल बेचना मजबूरी रहती है। सेब ज्यादा समय तक स्टोर कर नहीं रखा जा सकता और ज्यादा पकने पर मंडियों में अच्छे दाम नही मिलते। पिछले कई साल से बागवानों को यही कुछ मंडियों देखना पड़ रहा है।

कार्टन सस्ते नहीं मिले और यूनिवर्सल कार्टन उपलब्ध नहीं
प्रदेश में कार्टन पर सरकार ने जीएसटी 18 प्रतिशत लगाया था और बागवानों को छह फीसदी का उपदान देने का फैसला लिया गया। बागवानों ने बाजार से कार्टन खरीदे और छह फीसदी जीएसटी का लाभ अधिकांश बागवानों को नहीं मिला। बागवान टेलीस्कोपिक कार्टन के बदले यूनिवर्सल कार्टन उपलब्ध कराने का दबाव बनाते रहे। सरकार इस दिशा में बागवानों को राहत नहीं दे पाई। लिहाजा बागवानों को टेलीस्कोपिक कार्टन में 40 किलोे तक सेब भरकर बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। बागवानों को दाम बीस किलो के दिए गए गए।

हिमाचल प्रदेश सब्जी और फल उत्पादक संघ के अध्यक्ष हरीश चौहान कहते हैं कि कश्मीर की तर्ज पर सेब को एमएसपी, छोटे कोल्ड स्टोर और प्रोसेसिंग यूनिट, यूनिवर्सल कार्टन देने की मांग प्रमुखता की जाती रही है। इनके न होने से सेब अर्थ व्यवस्था पर विपरीत असर पड़ा है। जीएसटी में छह फीसदी उपदान का लाभ ज्यादा बागवानों को नहीं मिला है। सेब पर आयात शुल्क भी शत प्रतिशत नहीं किया गया।

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