सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला द्वारा अपने ससुराल वालों के खिलाफ दायर दहेज उत्पीड़न के मामले को रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह “स्पष्ट रूप से प्रतिशोध लेना चाहती थी” और आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देने से स्पष्ट रूप से अन्याय होगा। न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता को देखते हुए यह सुविचारित राय है कि अपने ससुराल वालों के खिलाफ महिला के आरोप पूरी तरह से असंतोषजनक हैं और प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है।
शीर्ष अदालत ने कहा, वह स्पष्ट रूप से अपने ससुराल वालों के खिलाफ प्रतिशोध लेना चाहती थी… आरोप इतने दूरगामी और असंभव हैं कि कोई भी विवेकशील व्यक्ति यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकता कि उनके खिलाफ आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त आधार हैं… ऐसी स्थिति में अपीलकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति देने से स्पष्ट और प्रत्यक्ष रूप से अन्याय होगा।
शीर्ष अदालत का यह फैसला मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर आया है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने महिला के देवरों और सास के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया था। महिला पेशे से शिक्षिका है और उसकी शादी वर्ष 2007 में हुई थी। हालांकि, पति ने अपनी शादी को खत्म करते हुए तलाक की डिक्री हासिल कर ली है। पति द्वारा तलाक की याचिका दायर करने से पहले महिला ने पुलिस को एक लिखित शिकायत दी थी, जिसमें उसने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ कई आरोप लगाए थे।