पीएम मोदी ने ऐसा क्यों कहा ? मैं कुर्सी का गुलाम नहीं बनूंगा

पीएम मोदी ने ऐसा क्यों कहा ? मैं कुर्सी का गुलाम नहीं बनूंगा

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को स्टेट वाइड अटेंशन ऑन ग्रीवन्सेज बाई एप्लीकेशन ऑफ टेक्नोलॉजी (स्वागत) के 20 साल पूरे होने के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम को डिजिटल तौर पर संबोधित किया। उन्होंने कहा कि ‘प्रो-एक्टिव गवर्नेस’ और परियोजनाओं के समय से पूरा होने के लिए प्रौद्योगिकी आधारित मंच ‘प्रगति’ का इतना प्रभाव पड़ा है कि जब किसी परियोजना को इसके तहत समीक्षा के लिए सूचीबद्ध किया जाता है, तो राज्य सरकारें इसके रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए कड़ी मेहनत करती हैं।

मुझे इस बात का संतोष है कि हमने जिस उद्देश्य से स्वागत को शुरू किया था वे पूरी तरह से सफल हो रहा है। इसके जरिए लोग ना सिर्फ अपनी समस्या का हल कर पा रहे हैं, बल्कि अपने साथ-साथ सैकड़ों परिवारों की बात उठा रहे हैं। मेरा मानना है कि सरकार का व्यवहार ऐसा होना चाहिए कि सामान्य मानवीय उनसे अपनी बातें साझा करें, उसे दोस्त समझे।

उन्होंने कहा कि 2003 में मैंने जब स्वागत की शुरूआत की थी, तब मुझे गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में ज्यादा समय नहीं हुआ था। उससे पहले मेरा ज्यादातर जीवन कार्यकर्ता के रूप में बीता था। कुर्सी मिलने के बाद मैंने मन में ही सोचा था कि मैं वैसा ही रहूंगा जैसा लोगों ने मुझे बनाया है, मैं कुर्सी का गुलाम नहीं बनूंगा। मैं जनता-जनार्दन के बीच रहूंगा, जनता-जनार्दन के लिए रहूंगा। शासन एक निर्जीव व्यवस्था नहीं है, यह जीवन से भरा है। शासन एक ऐसी व्यवस्था है जो संवेदनशील होती है। शासन लोगों के सपनों, आकांक्षाओं और संकल्पों से जुड़ा है।

पीएम मोदी ने कहा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा के लिए केंद्र में प्रगति कार्यक्रम शुरू किया। यह अवधारणा स्वागत पहल पर आधारित थी। प्रगति बैठकों में केंद्र के अलावा राज्यों के प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं। पिछले नौ साल में प्रौद्योगिकी आधारित मंच प्रगति ने देश के तेज गति से विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया है। उन्होंने प्रगति के तहत 16 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं की समीक्षा की।

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