इंस्पेक्टर को 10 साल कैद, चार लोगों को हिरासत में लेकर लापता करने का आरोप

इंस्पेक्टर को 10 साल कैद, चार लोगों को हिरासत में लेकर लापता करने का आरोप

तरनतारन जिले की गोइंदवाल पुलिस की ओर से गांव जिओबाला के चार व्यक्तियों को पुलिस हिरासत में लेकर लापता करने के 32 साल पुराने मामले में सीबीआई अदालत ने गोइंदवाल थाने के तत्कालीन इंस्पेक्टर सुरिंदर सिंह को 10 साल कैद की सजा सुनाई है। अदालत ने दो लाख रुपये हर्जाना भी लगाया है। इनमें से दो पीड़ितों के परिवार को 75-75 हजार रुपये और बाकी पीड़ितों के परिवारों को 25-25 हजार रुपये दिए जाएंगे।

इसी मामले में तत्कालीन डीएसपी भूपिंदरजीत सिंह, वैरोवाल थाने के तत्कालीन एसएचओ रामनाथ और वैरोवाल पुलिस चौकी के एसएचओ नाजर सिंह को अदालत साक्ष्यों के अभाव में बरी कर चुकी है। वहीं इस केस के एक आरोपी तत्कालीन एएसआई तेग बहादुर की ट्रायल के दौरान मौत हो चुकी है।

मामले में पीड़ित रहे स्वर्ण सिंह के पोते जसबीर सिंह ने बताया कि 23 जुलाई 1992 को थाना वैरोवाल की पुलिस ने गांव जिओबाला से प्यारा सिंह, उसके बेटे हरफूल, भतीजे गुरदीप सिंह व उनके दादा स्वर्ण सिंह को हिरासत में लिया था। इसके बाद पुलिस ने इन सभी के बारे में कुछ नहीं बताया। वहां से ले जाने के लिए पुलिस ने गांव के एक व्यक्ति के ट्रैक्टर का सहारा लिया था। 24 जुलाई 1992 को ट्रैक्टर में चारों को छोड़ने वाले व्यक्ति के साथ परिवार थाने पहुंचा तो इंस्पेक्टर सुरिंदर सिंह को पहचान लिया लेकिन पुलिस ने गांव से चार व्यक्तियों को लाने की बात से इन्कार कर दिया। इसके बाद वे कई अधिकारियों से मिले लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई।

हाईकोर्ट ने सीबीआई अदालत को सौंपा था केस
कहीं से इंसाफ मिलता न देखकर 1996 में प्यारा सिंह की पत्नी जागीर कौर ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में रिट पटीशन लगाकर इंसाफ मांगा। हाईकोर्ट ने 1999 में यह केस सीबीआई को सौंप दिया। सीबीआई ने केस दर्ज करने के बाद 2000 में तत्कालीन डीएसपी भूपिंदरजीत सिंह, एसएचओ रामनाथ व नाजर सिंह, इंस्पेक्टर सुरिंदर सिंह और एएसआई तेग बहादुर के खिलाफ चालान पेश कर दिया। इसके बाद ट्रायल शुरू हुआ। ट्रायल के दौरान तत्कालीन एएसआई तेग बहादुर की मौत हो गई थी।

पूर्व सैनिक प्यारा सिंह और अन्य व्यक्तियों का कुछ पता नहीं लगा
प्यारा सिंह पूर्व सैनिक थे। उन्होंने 1971 के युद्ध में हिस्सा लिया था इसलिए परिवार ने सेना से भी मदद मांगी लेकिन प्यारा सिंह और अन्य व्यक्तियों का कुछ पता नहीं लगा। इसी बीच बिजली बोर्ड में कार्यरत रहे गुरदीप सिंह को थाने में बिजली बोर्ड का एक जानकार मिला। गुरदीप सिंह ने उसके माध्यम से परिवार को एक रुक्का भेजा और अपने हालात के बारे में बताते हुए एसपी (ऑपरेशन) खूबी राम से मिलने के लिए कहा। रुक्का मिलने के बाद परिवार 27 अगस्त को एसपी खूबी राम से मिला तो उन्होंने डीएसपी भूपिंदरजीत सिंह को लिखित संदेश भेजा कि अगर प्यारा सिंह व उसके साथी किसी मामले में वांछित नहीं हैं तो उन्हें रिहा किया जाए, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने इस पर कोई गौर नहीं किया।

परिवार बोला- न्याय अधूरा, उच्च अदालत का खटखटाएंगे दरवाजा
गांव माड़ी नौ आबाद के जसबीर सिंह ने कहा कि उनके दादा स्वर्ण सिंह रिश्तेदारी में गए हुए थे। 23 जुलाई की रात करीब नौ बजे पुलिस उनके खेत पर पहुंची। घरवालों के सामने पुलिस ने चारों व्यक्तियों को पकड़कर पीटा और गालियां भी निकालीं। इस दौरान वह पांच-छह साल के थे। परिवार की महिलाएं पुलिस से रहम की अपील करती रहीं लेकिन उन्होंने एक न सुनी और चारों को पकड़ ले गई। अगले दिन से चारों की तलाश शुरू की गई लेकिन पुलिस ने कुछ भी बताने से मना कर दिया। जसबीर सिंह, जागीर कौर और हरजीत कौर ने कहा कि 32 साल बाद आए अदालत के फैसले से वे संतुष्ट नहीं हैं, यह न्याय अधूरा है, वे पूरा न्याय पाने के लिए उच्च अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे।

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