

प्रदेश में स्थापित करीब 750 फार्मा उद्योगों में से सिर्फ 60 से 70 फीसदी उद्योग ही काम कर पा रहे हैं। वे भी 10 से 15 फीसदी तक ही उत्पादन कर पा रहे हैं। उद्योगों से थोक विक्रेता तो दवा ले जाते हैं, लेकिन परिवहन सेवा बंद होने से रिटेलरों तक दवाएं नहीं पहुंच पा रही हैं। यदि यह स्थिति ऐसी ही चलती रहे तो आने वाले समय में भारी परेशानी होगी। सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि उद्योगपति और स्टाफ सहित कामगार ट्राइसिटी में फंसे हैं, जिसकी वजह से उनकी आवाजाही पर रोक है, जिससे वे उद्योगों में उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं।
स्थानीय कामगार घर चले गए हैं। ऊना जिले के मैहतपुर और टाहलीवाल में दवा उद्योग हैं, जिनमें 90 फीसदी काम ठप पड़ा है। मैहतपुर के एक बड़े दवा उद्योग स्विस गार्नियर में जहां तीन शिफ्टों में काम होता था, अब एक शिफ्ट चल रही है। उद्योग में कुल छह सौ कर्मचारी हैं, जिनमें से अब दो सौ कर्मचारी रह गए हैं। हिमाचल, पंजाब समेत दक्षिण भारत तक दवा की सप्लाई करने वाले इस उद्योग में तकरीबन 1500 प्रकार की दवाइयों का उत्पादन होता है। स्विस गार्नियर में एचआर प्रबंधक प्रवीण कुमार ने बताया कि लोगों को घरों में रहकर इस महामारी से लड़ना होगा, यही समय की मांग है।
फार्मा उद्योग 10 से 15 फीसदी उत्पादन कर पा रहे हैं। कामगारों के अभाव और कच्चा माल न मिलने से र्कई उद्यमी उत्पादन ही शुरू नहीं कर पा रहे हैं।-डॉ. राजेश गुप्ता, अध्यक्ष हिमाचल दवा निर्माता संघ