हिमाचल में कई वर्षों से वन अभयारण्य की कैद में फंसे 812 गांव अब मुक्त होने जा रहे हैं। एक-दो दिन में इसकी अधिसूचना जारी होगी।
चुनाव आचार संहिता लगी होने के चलते हिमाचल सरकार ने निर्वाचन आयोग से विशेष मंजूरी ले ली है। इन गांवों में से 775 राजस्व गांव और शेष उप गांव हैं।
भारत सरकार वन्य प्राणी अधिनियम 1972 के तहत वन अभयारण्य चिन्हित और घोषित करती है। राज्य में इस समय 29 वन्य प्राणी स्थल (सेंक्चुरी), तीन कंजरवेशन रिजर्व (वन संरक्षित क्षेत्र) और दो नेशनल पार्क हैं।
इनकी घोषणा के बाद से ही इनके दायरे में लाए गए हजारों गांवों ने इस कारण लगी बंदिशों का विरोध किया था। अब इन क्षेत्रों को दोबारा चिन्हित कर 812 गांवों को इस दायरे से बाहर घोषित किया गया है।
ये लगभग राज्य के सभी जिलों में हैं। यह मसला राज्य में कई बार चुनावी मुद्दा भी बन चुका है। वन विभाग ने इस मसले पर केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने के बाद अधिसूचना के ड्राफ्ट पर विधि विभाग से भी सलाह ले ली है।
इन गांवों को सेंक्चुरी से बाहर करने पर केंद्र सरकार से मार्च 2013 में मंजूरी मिल गई थी। लेकिन अब तक अधिसूचना जारी नहीं की जा सकी। इसका कारण है कि बाहर किए जाने वाले गांवों की फील्ड वेरिफिकेशन की गई।
इसमें खसरा नंबर तक मिलाया गया। एक बार अधिसूचना जारी होने के बाद इसमें फिर संशोधन जारी कर बदलाव नहीं हो सकेगा। इसलिए गांवों की 100 फीसदी पहचान जरूरी थी।
वन अभ्यारण्यों के तहत आने वाले गांव जंगल के भीतर होते हैं। यहां वाइल्ड लाइफ एक्ट 1972 के लागू होने से ग्रामीण शादी में ढोल नगाड़ों का इस्तेमाल भी नहीं कर सकते।
क्षेत्र के विकास के लिए सड़क निर्माण, पेयजल और सिंचाई योजनाएं बनाने के लिए अनुमति के लिए पेचीदा और लंबी प्रक्रिया है। हर छोटा बड़े मामले के लिए स्टेट से लेकर नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड से मंजूर करवाना पड़ता था। कंकरीट के भवन निर्माण पर पर भी बंदिश थी।
812 गांवों को सेंक्चुरी से बाहर करने पर सारा काम पूरा हो गया है। चुनाव आयोग ने भी मंजूरी दे दी है। इसलिए जल्द अधिसूचना जारी कर रहे हैं। यह अधिसूचना हर वन अभयारण्य के लिए अलग से होगी।
– ठाकुर सिंह भरमौरी, वन मंत्री, हिमाचल सरकार।