सरकारी जमीन बिल्डर को नहीं दे सकता प्राधिकरण

गाजियाबाद। जीडीए को पुनर्ग्रहण में मिली सरकारी जमीनों को किसी और को हस्तांतरित करने और बेचने का अधिकार नहीं है। नगर निगम पार्षद राजेंद्र त्यागी की याचिका पर हाईकोर्ट ने यह आदेश सुनाया। आरडीसी में पत्रकार वार्ता में पार्षद ने हाईकोर्ट के आदेश की जानकारी दी। उन्होंने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर प्रदेश भर में निजी बिल्डरों को दी गई सरकारी जमीनों को वापस लेने की मांग की है।
राजेंद्र त्यागी ने बताया कि डूंडाहेडा में बड़ी मात्रा में नगर निगम की जमीन है। जमीन को इस क्षेत्र में कार्यरत मै. क्रासिंग्स इंफ्रास्ट्रक्चर्स प्रा. लिमिटेड ने लेने का प्रस्ताव जीडीए में रखा। जीडीए ने भी तुरंत बिल्डर को जमीन देने का प्रस्ताव मेरठ मंडलायुक्त को भेज दिया। मंडलायुक्त ने प्रस्ताव पर निगम की करीब 19 हेक्टेयर भूमि को 2007 में पुनर्ग्रहित करते हुए बिल्डर को हस्तांतरित करने का आदेश दिया। इसके खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। इस पर हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से आदेश दिए हैं कि सरकारी भूमियों का पुनर्ग्रहण बिल्डर के लिए नहीं हो सकता। इसके बावजूद 17 मार्च 2009 में जीडीए के प्रस्ताव, डीएम की संस्तुति पर मंडलायुक्त ने फिर जमीन के पुनर्ग्रहण के नए आदेश जारी किए। आठ से 12 हजार रुपये डीएम सर्किल रेट वाली जमीनों को 2000 रुपये प्रतिवर्गमीटर की दर से पुनर्ग्रहण करने के आदेश दिए गए। फिर मैंने आपत्ति दर्ज कराई। इस पर 25 मई 2009 को कोर्ट ने स्टे आर्डर जारी किया कि जीडीए को पुनर्ग्रहण में मिली इन सरकारी जमीनों को हस्तांतरित करने और बेचने का अधिकार नहीं है। आठ दिसंबर 2012 को हाईकोर्ट ने 2009 के पुनर्ग्रहण के आदेश को रद्द कर दिया है। साथ ही याचिकाकर्ता से कहा गया है कि अपनी आपत्ति मेरठ मंडलायुक्त के पास भी दर्ज करवा दें।
जारी है जमीनों की खुली लूट ः त्यागी
गाजियाबाद। पार्षद राजेंद्र त्यागी ने आरोप लगाया कि गाजियाबाद में सरकारी जमीनों की खुली लूट जारी है। नौ हजार एकड़ में बस रही हाईटेक सिटी में ही जीडीए ने करीब 400 से 450 एकड़ सरकारी जमीन दे दी है। सभी गांवों में 8 फीसदी सरकारी जमीनें होती हैं। उन्होंने कहा कि डूंडाहेड़ा क्षेत्र में जीडीए की सभी गतिविधियां असंवैधानिक हैं। 1994 से यह क्षेत्र जीडीए के विकास क्षेत्र में नहीं है। प्रदेश सरकार के गजट के जरिए फरवरी 1994 में डूंडाहेड़ा और अकरबरपुर-बहरामपुर व मवी ग्रेटर नोएडा का हिस्सा हो गया था। 1999 में इसे ग्रेटर नोएडा से डिनोटिफाई कर दिया गया। लेकिन इसे जीडीए के साथ नहीं जोड़ा गया। यह जानकारी खुद जीडीए ने आरटीआई में दी है। त्यागी ने कहा कि जमीनों को लेकर नगर निगम अधिकारियों का रवैया उदासीन बना हुआ है। निगम अधिकारियों ने 200 करोड़ रुपये की सरकारी जमीन को निजी बिल्डर को कौड़ियों के दाम दिए जाने का कोई विरोध तक नहीं दर्ज कराया गया। नियमानुसार सरकारी जमीनों का बाजार मूल्य मिलना चाहिए। भूमि विकास अधिनियम की धारा (161) में यह प्रावधान है कि नगर निगम तैयार हो जाए तो एक्सचेंज ऑफ लैंड में जमीन दे सकता है। जमीन लेने वाला इतनी ही जमीन निगम को कही और दे सकता है। लेकिन इसके मूल्य में 10 फीसदी से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए।

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