अदालत ने लोक निर्माण विभाग के सचिव से 31 मार्च को पूरे होने वाले प्रोजेक्टों की जानकारी तलब की है। इसके अलावा अदालत ने राजमार्गों से अवैध कब्जे को हटाने की ताजा रिपोर्ट दायर करने के आदेश दिए है।

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने लोक निर्माण विभाग के लंबित प्रोजेक्टों पर कड़ा संज्ञान लिया है। अदालत ने लोक निर्माण विभाग के सचिव से 31 मार्च को पूरे होने वाले प्रोजेक्टों की जानकारी तलब की है। इसके अलावा अदालत ने राजमार्गों से अवैध कब्जे को हटाने की ताजा रिपोर्ट दायर करने के आदेश दिए है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 17 मार्च निर्धारित की है। इससे पहले अदालत ने लोक निर्माण विभाग के सचिव से सभी लंबित परियोजनाओं की जानकारी तलब की थी। सचिव ने यह जानकारी अदालत को सौंप दी है। अदालत ने पाया था कि लोक निर्माण विभाग वित्तीय स्वीकृति के बावजूद भी परियोजनाओं को पूरा करने में नाकाम रहा है। प्रदेश भर के राजमार्गों से अवैध कब्जे को हटाने के लिए हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने राजमार्गों से सभी अवैध कब्जों को हटाने के आदेश दिए थे। जिन अवैध कब्जाधारियों ने अदालत में याचिका दायर की है, उन्हें निपटाने के लिए हाईकोर्ट ने सक्षम अदालत को निर्धारित समय में निपटाने के आदेश दिए है। याचिकाकर्ता हरनाम सिंह की याचिका को अदालत ने जनहित में तब्दील किया है।
गांवों में चरागाह वाली भूमि पर खनन पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक
गांवों की आरक्षित पूल की भूमि को खनन के लिए देने के मामले में हाईकोर्ट ने कड़ा संज्ञान लिया है। उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई में गांवों की चरागाह वाली भूमि पर खनन गतिविधियां करने पर रोक लगा दी है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किए। साथ ही खनन करने वाले प्रतिवादी को आदेश दिए कि वह इस मामले में जवाब दायर करे। मामले की सुनवाई 6 मार्च को निर्धारित की गई है। इस मामले में अदालत ने विक्रम कुमार के आवेदन को स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि आरक्षित पूल की भूमि को आवंटन योग्य पूल में तबदील नहीं किया जा सकता है। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि हिमाचल प्रदेश विलेज कॉमन लैंड वेस्टिंग और उपयोग अधिनियम, 1974 के अनुसार गांव की आरक्षित पूल की भूमि पर सरकार का स्वामित्व होता है।
इस भूमि को दो भागों में बांटा जाता है। 50 फीसदी भूमि को चरागाह के लिए उपयोग किया जाता है और 50 फीसदी भूमि को आवंटन योग्य पूल में रखा जाता है। इस भूमि में से भूमिहीन ग्रामीणों को भूमि आवंटित की जाती है। अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार चरागाह वाली भूमि को आवंटन योग्य पूल में तबदील नहीं किया जा सकता है। इस भूमि को किसी अन्य उपयोग के लिए इस्तेमाल पर भी मनाही है। याचिकाकर्ता और अन्य कांगड़ा जिला के ग्राम पंचायत कौलपुर के निवासी है। गांव के लिए लगभग 15 बीघे जमीन चरागाह के लिए दी गई थी। आरोप लगाया गया है कि प्रधान सचिव राजस्व ने इस भूमि को खनन के लिए आवंटित कर दिया। अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए खनन पर तुरंत प्रभाव से रोक लगाने के अंतरिम आदेश पारित किए।