नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम जज की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय कमेटी व कैबिनेट की नियुक्ति कमेटी से मंजूर नियुक्ति को क्या एक सेक्शन अधिकारी नामंजूर कर सकता है। हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार व रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने यह नोटिस राजन शर्मा की उस याचिका पर दिया है, जिसमें उन्होंने सिंगल जज के फैसले को चुनौती दी है। याची ने आरोप लगाया कि रेलवे मुआवजा पंचाट के सदस्य (न्यायिक) पद पर उनकी नियुक्ति के बावजूद उन्हें मात्र इस आधार पर नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया कि सेक्शन अधिकारी बीएन कैथल ने एक फर्जी शिकायत पर उनकी नियुक्ति को गलत बता दिया था। खंडपीठ ने केंद्र सरकार व रेलवे बोर्ड के अलावा राजन शर्मा के स्थान पर नियुक्त सदस्य एबीएस नायडू को भी नोटिस जारी किया है। खंडपीठ ने रेल मंत्रालय व रेलवे बोर्ड को रेलवे मुआवजा पंचाट सदस्य (न्यायिक) का एक पद रिक्त रखने का निर्देश देते हुए स्पष्ट कर दिया कि नायडू की नियुक्ति अदालत के फैसले पर निर्भर होगी।
याची के अधिवक्ता आरके सैनी व इंद्रजीत शर्मा ने अदालत को बताया कि उनका मुवक्किल रेलवे मुआवजा पंचाट सदस्य (न्यायिक) पद पर 14 मार्च 2005 से 13 मार्च 2010 तक रह चुका है। उन्होंने कहा रिटायर होने के बाद उनके मुवक्किल ने पुन: इस पद के लिए आवेदन किया व आवेदन की जांच के बाद रेलवे बोर्ड ने उनके मुवक्किल को साक्षात्कार के लिए बुलाया। उन्होंने कहा कि उच्चाधिकार प्राप्त सलेक्शन बोर्ड ने साक्षात्कार के बाद उनके मुवक्किल को पहले नंबर पर रखा। साक्षात्कार लेने वाले बोर्ड में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम जज, रेलवे बोर्ड चेयरमैन, चेयरमैन रेलवे मुआवजा पंचाट, केंद्रीय विधि मंत्रालय के सचिव शामिल होते हैं। बोर्ड के निर्णय पर कैबिनेट की नियुक्ति कमेटी (एसीसी) ने भी अपनी मोहर लगा दी। बावजूद इसके उनके मुवक्किल को नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया और तीन अन्य को नियुक्ति पत्र दे दिया गया। उन्होंने कहा कि जब उनके मुवक्किल ने इसका कारण जानना चाहा, तो सेक्शन अधिकारी ने बताया कि वे इस पद के लिए योग्य ही नहीं है। उन्होंने कहा कि सिंगल जज ने इन सभी तथ्यों को नजरअंदाज किया है। उनके मुवक्किल के खिलाफ जो शिकायत की गई है, उसके शिकायतकर्ता का भी कोई अतापता नहीं है।