राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने के लिए रेलवे वर्कशाप कालका की ओर से एक हेरिटेज कोच का निर्माण कर उसे राजघाट (दिल्ली) भेजा गया है। महात्मा गांधी जिस कोच में सफर किया करते थे, उस आधार पर इस कोच को लुक दी गई है। कोच का निर्माण पुराने जमाने के कोच के आधार पर किया गया है।
कोच में अधिकांश जगह पर शानदार वुडन वर्क किया गया है। इस डिब्बे को महात्मा गांधी कोच के नाम से पुकारा जा रहा है। फिलहाल कोच के बारे में जानकारी देने से रेलवे अधिकारी बचते नजर आ रहे हैं। नाम न छापने की शर्त में एक अधिकारी ने बताया कि यह यात्री कोच नहीं है। इसका प्रयोग केवल डिस्प्ले के लिए किया जाएगा। इसका निर्माण तीन से चार माह में किया गया।
तीसरी श्रेणी के इस कोच में लकड़ी से सीट तैयार किए गए हैं एवं उनके सामने बैंचकोच एक तरफ से पूरा कवर, जबकि एक साइड से पारदर्शी है। यहां से अंदर का नजारा लिया जा सकता है।
पुराने डिजाइन ढूंढकर तैयार किया कोच
रेलवे सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार उस समय में तीसरी श्रेणी के कोच जिस प्रकार के होते थे, कोच को वह स्वरूप देने के लिए पुराने कोच के डिजाइन को वर्कशाप कर्मचारियों की ओर से सर्च किया गया। इसके बाद कोच को उसी प्रकार का स्वरूप दिया गया है। कोच में अधिकांश जगह लकड़ी के काम की शानदार कलाकारी पेश की गई है। जगाधरी रेलवे वर्कशाप के अधिकारियों के आदेशानुसार इसे कालका वर्कशाप में तैयार किया गया है।
तीसरी श्रेणी के कोच जैसा दिया गया लुक
इस डिब्बे को उस समय के तीसरी श्रेणी के कोच जैसा लुक दिया गया है। जिस प्रकार कि ट्रेन में सीटें हुआ करती थी, वैसी सीट एवं उनके सामने बेंच बनाए गए हैं। सभी लकड़ी से तैयार किए गए हैं। ट्रेन का यह कोच एक तरफ से पूरा कवर है, जबकि एक साइड से यह पारदर्शी है, जहां से अंदर का पूरा नजारा दिखाई पड़ता है।
जानकारी के अनुसार गांधी जी जब 1915 में भारत लौटे तो उन्होंने कभी फ़र्स्ट क्लास का रुख नहीं किया और हमेशा तीसरे दर्जे के डिब्बे में ही सफर किया था। इसी के मद्देनजर वर्कशाप कालका में तैयार किए गए इस डिब्बे को तीसरी श्रेणी के डिब्बे की लुक दी गई है। इस डिब्बे पर पहले जमाने की तरह (3) भी लिखा हुआ है।
कालका-शिमला लाइन से कई बार किया था सफर
विश्व धरोहर में शामिल कालका-शिमला रेलमार्ग पर चलने वाली टॉय ट्रेन देश में ही नहीं अपितु विदेश में भी प्रसिद्ध है। इस रेलमार्ग पर टाॅय ट्रेन से सफर करने के लिए सर्दियों और गर्मियों के मौसम में सैलानियों का तांता लगा रहता है। बता दें कि महात्मा गांधी ने भी इस रेलमार्ग पर सफर का आनंद लिया था। बता दें कि 1921 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी इस मार्ग से यात्रा की थी।
आज से करीब 102 वर्ष पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी देश को आजाद करवाने के लिए अंग्रेजी सरकार के प्रतिनिधियों से बातचीत करने शिमला गए थे। वह कालका-शिमला रेल मार्ग से यात्रा करके समरहिल स्टेशन पर उतरे थे। उनके साथ उनकी धर्मपत्नी कस्तूरबा गांधी, लाला लाजपतराय सहित अन्य भी शिमला पहुंचे थे।
शिमला आने पर गांधीजी ज्यादातर मैनोर विला, जाखू के फायर ग्रोव या शांति कुटीर में ही ठहरते थे। यहीं पर उन्होंने वे ऐतिहासिक फैसले लिए जो देश की आजादी में मील का पत्थर साबित हुए।