
उदयपुर (लाहौल-स्पीति)। व्हाइट टैरर(श्वते आतंक) के नाम से मशहूर रोहतांग दर्रा भारी बर्फ के बीच मौत की घाटी के नाम से जाना जाता है। फिर भी लोग इस पर बेखौफ हो कर बचाव चौकियों में बिना नाम व पता पंजीकरण किए हुए कदमताल कर रहे हैं। शायद लोग 19 नवंबर, 2009 का दिन भूल गए है। उस दिन बर्फीले तूफान से झारखंड के आठ मजदूर जिंदा दफन हो गए थे। इस खौफनाक मंजर से आज हर भी लोग सहमे हुए है। बावजूद लोग बिना किसी परवाह के दर्रा को लांघ रहे हैं। बचाव दल के कर्मी लोगों की सुरक्षा व सहायता को रोहतांग दर्रा के दोनों ओर कोकसर व मढ़ी में तैनात हैं। कोकसर में तैनात बचाव दल के प्रभारी लुदर सिंह ने दर्रा पैदल आरपार करने वाले लोेगों से अपील की है दर्रा को लांघने से पहले कोकसर व मढ़ी बचाव चौकियों में अपना पंजीकरण कराने के बाद ही आगे बढ़ें ताकि आपात स्थिति में बचाव दल के कर्मियों की सहायता मिल सके। लुदर सिंह ने कहा कि कई यात्री रोहतांग की ओर बढ़ जाते है। कहा कि कुछ दिनों में प्रवासी मजदूरों का लाहोल आना शुरू हो जाएगा। राष्ट्रीय इतिहास संकलन समिति के सदस्य छेरिंग दोरजेे ने कहा कि 1972 में आए बर्फीले तूफान से तो यहां इतनी दहशत थी कि लोेगों ने इसे व्हाइट टैरर (श्वेत आतंक) का नाम दिया था। एसपी लाहौल-स्पीति सुनील कुमार चौधरी ने बताया कि सर्दी के मौसम में यहां दर्रा आरपार करने वालने राहगीरों से बचाव चौकियों अपना नाम व पता पंजीकरण करवाने की हिदायत दी है।