हिमाचल प्रदेश में अवैध निर्माण को रोकने के लिए पंचायत स्तर पर नियम लागू करने की पेशकश की गई है। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को इस बारे में सुझाव पेश करने के आदेश दिए हैं। बुधवार को सुनवाई के दौरान अदालत को पंचायती राज अधिनियम के प्रावधानों से अवगत करवाया गया। मामले पर सुनवाई आज भी जारी रहेगी। अदालत को बताया गया कि पंचायती राज अधिनियम की धारा 14 के अंतर्गत पंचायत स्तर पर अवैध निर्माण पर नियंत्रण के प्रावधान दिए गए हैं, लेकिन राज्य सरकार ने इन्हें अभी तक लागू नहीं किया है। याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि यदि सरकार इन नियमों पर अमल करे तो प्रदेश भर से अवैध निर्माण की समस्या खत्म हो जाएगी। अधिनियम में प्रावधान है कि राज्य सरकार गांव के लिए मॉडल योजना तैयार करेगी और पंचायत को लागू करने के लिए भेजेगी। संबंधित पंचायत ग्राम सभा में इसे स्वीकृत या संशोधित कर लागू कर सकती है या अस्वीकार कर सरकार को वापस भेज सकती है। सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि प्रदेशभर में 90 क्षेत्र प्लानिंग एरिया और स्पेशल एरिया में लाए गए हैं। इन क्षेत्रों में नियमों के अनुसार ही भवन निर्माण की अनुमति है। हाईकोर्ट ने कुमारहट्टी के समीप मल्टी स्टोरी निर्माण पर संज्ञान लिया है। अदालत ने आठ मंजिल और 2500 वर्ग मीटर से अधिक निर्माण पर रोक लगा रखी है। खील-झलाशी गांव से कैंथरी गांव तक 6 किलोमीटर में सड़क के दोनों तरफ भवन निर्माण को याचिकाकर्ता कुसुम बाली ने चुनौती दी है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि खील-झलाशी गांव से कैंथरी गांव तक बड़े-बड़े भवनों का निर्माण किया गया है। इसके लिए पहाड़ी को काटा गया है। इससे न केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा है बल्कि जान-माल का खतरा भी बना रहता है।
अभियोग के दो विचारों में विचारण अदालत का निर्णय सही : हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने दोष मुक्ति के विरुद्ध अपील दायर करने पर अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि जहां अभियोग के दो विचार हो सकते है, उस स्थिति में विचारण अदालत के निर्णय को सही माना जाता है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह ने सरकार को दोषमुक्ति के विरुद्ध अपील दायर करने की अनुमति नहीं दी। राज्य सरकार ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सरकाघाट के उस फैसले को चुनौती देने की स्वीकृति मांगी थी। इसमें विनोद कुमार को दोषमुक्त किया गया था। निचली अदालत ने विनोद कुमार को भारतीय दंड संहिता की धारा 451, 354, 354ए और 376 के आरोपों से दोषमुक्त किया था। सरकार की ओर से दलील दी गई थी कि निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने के लिए काफी अच्छी दलीलें है। हाईकोर्ट ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन पर पाया कि पीड़ित ने अभियोजन पक्ष और अदालत के समक्ष विरोधाभासी बयान दिया है। इसमें निचली अदालत ने विनोद कुमार को बरी किया है। अदालत ने पाया कि पीड़ित ने विनोद कुमार पर कोई दुष्कर्म का आरोप नहीं लगाया है, लेकिन बाद में बयान दिया कि शादी का झांसा देकर विनोद कुमार ने उससे दुष्कर्म किया है। अदालत ने पाया कि पीड़ित के बयान विरोधाभासी होने पर विचारण अदालत ने सही सराहा है। अदालत ने कहा कि दुष्कर्म के मामलों में पीड़ित के बयान पर ही आरोपी को सजा दी जा सकती है, लेकिन पीड़ित का बयान आत्मविश्वास को प्रेरित करने वाला होना चाहिए। अदालत ने राज्य सरकार की याचिका को खारिज करते हुए यह निर्णय सुनाया।