तहबाजारी देने को तैयार नहीं व्यापारी

हल्द्वानी। नगर निगम की प्रापर्टी पर कारोबार करने वाले व्यापारी अब तहबाजारी शुल्क देने के बजाए सीनाजोरी करने लगे हैं। नगर निगम ने 17 साल बाद तहबाजारी शुल्क तीन रुपये से बढ़ाकर 25 रुपये किया है। शहर के 60 फीसदी फुटकर व्यापारी तहबाजारी शुल्क नहीं दे रहे हैं। निगम प्रशासन और बोर्ड पर शुल्क कम करने का दबाव बनाया जा रहा है। हालांकि, तहबाजारी मुद्दे पर शहर के प्रमुख व्यापारिक संगठनों ने चुप्पी साधी है।
हल्द्वानी नगर निगम क्षेत्र में दस हजार से ज्यादा फड़, ठेली लगती हैं। जबकि निगम के रिकार्ड में महज 950 फड़ एवं ठेलियां पंजीकृत हैं। व्यापारियों के दबाव में नगर निगम बोर्ड 1996 से तहबाजारी शुल्क नहीं बढ़ा पा रहा था। पिछले साल नगर पालिका बोर्ड भंग होने के बाद तत्कालीन प्रशासक के रूप में जिलाधिकारी ने तहबाजारी शुल्क बढ़ाने का प्रस्ताव शासन को भेज दिया। प्रस्ताव में तहबाजारी शुल्क मौजूदा मार्केट की स्थिति को देखते हुए 25 रुपये निर्धारित किया था। शासन ने प्रस्ताव को स्वीकृत कर तहबाजारी शुल्क 25 रुपये करने का अधिसूचना जारी कर दी।
शुल्क वृद्धि के बाद उसे लागू कराने में नगर निगम प्रशासन के पसीने छूट रहे हैं। निगम क्षेत्र में 60 फीसदी फुटकर व्यापारी 25 रुपये रोजाना तहबाजारी देने को राजी नहीं हैं। इसमें अधिकांश व्यापारी मंगल पड़ाव सब्जी मंडी एवं बाजार क्षेत्र के हैं। नगरनिगम के मार्केटिंग अनुभाग के मुताबिक शुल्क वृद्धि के बाद मई में दो लाख 61 हजार 764 रुपये तहबाजारी वसूल हुई है। शुल्क वृद्धि से पहले अप्रैल में तहबाजारी शुल्क 60396 रुपये वसूला गया था। सभी व्यापारियों से 25 रुपये तहबाजारी शुल्क की वसूली की जाए तो निगम को प्रतिमाह 7,12,500 रुपये आमदनी होगी।

हल्द्वानी में लगने वाले फड़ एवं ठेलियों का सर्वे कराया जाएगा। सर्वे के बाद फुटकर व्यापारियों की असली तस्वीर सामने आएगी और सभी से तहबाजारी शुल्क वसूल होगा। – डा. जोगेंद्र रौतेला, मेयर नगरनिगम

तहबाजारी शुल्क वृद्धि की अधिसूचना हो चुकी है। तहबाजारी शुल्क नहीं देने वाले व्यापारियों से जुर्माने वसूली का प्रावधान है। निगम प्रशासन ऐसे व्यापारियों को चिह्नित करने की कार्रवाई कर रहा है। – आरडी पालीवाल, मुख्य नगर अधिकारी, नगर निगम

महंगाई और आमदनी बढ़ी तो तहबाजारी क्यों नहीं?
1996 से अब तक महंगाई और आमदनी में कई गुना इजाफा हुआ है। 17 साल पहले आटा छह रुपये किलो और आलू 2 रुपये किलो था। आज आटा 20 रुपये और आलू 25 रुपये किलो है। इसी तरह 1996 में सोने का भाव करीब 4700 रुपये तोला था, जो वर्तमान में 32 हजार पहुंच चुका है। इसी तरह दैनिक जरूरत की चीजें की कीमतें कई गुना बढ़ी हैं। महंगाई के साथ-साथ लोगों की आमदनी में भी कई गुना बढ़ी है। फड़ एवं ठेली व्यापारी आमदनी से बाहर नहीं हैं। 1996 में जब एक फड़ एवं ठेली व्यापारी बमुश्किल 100 रुपये रोज कमाता था, आज वहीं व्यापारी चार से पांच सौ रुपये रोजाना कमाता है। ऐसे में 25 रुपये तहबाजारी शुल्क किसी भी व्यापारी की जेब पर बोझ नहीं बन सकता है।

200 रुपये दुकानदार को देते हैं
नगर निगम को 25 रुपये तहबाजारी देने में नाक मुंह सिकोड़ने वाले अधिकांश फड़ एवं ठेली वाले बाजार में दुकान मालिकों को प्रतिदिन 150 से दो सौ रुपये देते हैं। बाजारों में नगर निगम की सड़क पर अपनी दुकानों के आगे व्यापारी फड़ एवं ठेलियां लगाते हैं। इसके एवज में दुकान व्यापारी फड़ एवं ठेली वालों से रोजाना वसूली करते हैं। सब्जी मंडी में तो फड़ एवं ठेली लगाने के लिए जगह तक बिकती है। पहले से स्थापित व्यापारी नए व्यापारी को फड़ एवं ठेली लगाने के लिए तीन से चार लाख रुपये की जगह बेचते हैं। तहबाजारी शुल्क के विरोध में फुटकर व्यापारियों की पैरवी करने वाले नगरनिगम के पार्षद और बाजारों के व्यापारियों के हित इनसे जुडे़ हैं।

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