गांवों में अधिक हो रहा कोख में कत्ल

देहरादून। ग्रामीण क्षेत्रों में बेटियों का कोख में कत्ल अधिक हो रहा है। इस बात की गवाही जनगणना 2011 के आंकड़े दे रहे हैं। वर्ष 2001 की जनगणना से अब तक दस साल का अरसा गुजरा है। इस दौरान शून्य से छह साल तक की बेटियों की संख्या शहर की तुलना में गांवों में अधिक गिरी है।
कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए पीएनडीटी एक्ट ग्रामीण अंचलों में कितना प्रभावी है, इसकी एक बानगी, इन आंकड़ों से देखिए। शून्य से छह वर्ष तक के बच्चों के आंकड़े बताते हैं कि दस साल में गांवों में बच्चों की संख्या 919 से घटकर 915 हो गई है। गांवों में चार बच्चे घटे हैं। माना जा रहा है कि संख्या बेटियों की घटी है। स्वास्थ्य विभाग के पास गांवों के अल्ट्रासाउंड सेंटरों का आंकड़ा नहीं है।
विभागीय सूत्र बताते हैं कि गांवों में पोर्टेबिल मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। वैसे स्वास्थ्य विभाग को यह भी नहीं पता है कि जिले में कितनी पोर्टेबिल मशीनें हैं। सूत्र बताते हैं कि इनसे भ्रूण के लिंग की पहचान हो जाती है। बाद में दाइयों से या फिर नर्सिंगहोमों में गर्भपात करा दिया जाता है। जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की टीमें शहरी क्षेत्र में तो अभियान चलाती हैं, लेकिन उनका ध्यान ग्रामीण अंचलों की ओर नहीं जाता। लोगों का कहना है कि गांव की सामाजिक परिस्थितियां ऐसी हैं जो इस अपराध को बढ़ावा देती हैं। वैचारिक पिछड़ापन भी इसके पीछे एक कारण है। स्वास्थ्य विभाग ने गांवों में झोलाछाप डाक्टरों की तलाश शुरू कर दी है। नर्स और दाइयां भी पैसों की लालच में इस काम में लगी हैं। मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ आरपी भट्ट का कहना है कि झोलछाप डाक्टरों का आंकड़ा इकट्ठा किया जा रहा है। इसके बाद कार्रवाई होगी।

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