

सभी डीसी यह सुनिश्चित करेंगे कि घर जाने वाले हर कैदी को परिवहन पास उपलब्ध हो और उनके जेल से घर जाने की भी व्यवस्था करें। जेल अधीक्षकों को निर्देश दिए कि छोड़े जाने से पहले हर कैदी का मेडिकल अफसर से मेडिकल कराया जाएगा। सभी जेलों के अधीक्षक छूटने योग्य सजायाफ्ता व विचाराधीन कैदियों की सूची बनाकर डीजी जेल कार्यालय और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को उपलब्ध कराएंगे, ताकि दोनों संस्थाएं इन पर निर्णय कर आदेश जारी कर सकें।
बता दें, हिमाचल प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन जस्टिस टीएस चौहान की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कमेटी गठित की गई थी, जिसमें अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह मनोज कुमार और महानिदेशक जेल सोमेश गोयल को सदस्य बनाया गया था। कमेटी की शुक्रवार को हुई बैठक में निर्णय हुआ था कि सात साल से कम सजा वाले अपराध के आरोप में जेल में बंद ऐसे विचाराधीन व सजायाफ्ता कैदियों को छोड़ा जाएगा जो पहली बार जेल गए हैं।
इसके लिए यह शर्त रखी गई कि ऐसे कैदी को कम से कम तीन महीने से ज्यादा समय से जेल में बंद होना जरूरी होगा। सजायाफ्ता कैदियों के लिए पैरोल या सजा माफी जैसी प्रक्रिया डीजी जेल और प्रदेश सरकार के स्तर पर चलाई जानी है। जबकि विचाराधीन कैदियों को छोड़ने के लिए उनका हिमाचल प्रदेश का निवासी होना अनिवार्य किया गया है।