
शिमला। सोमवार से शहर में पार्किंग किल्लत और भयानक रूप लेने वाली है। पंद्रह अप्रैल से टूरिस्ट समर सीजन शुरू हो रहा है। हजारों पर्यटक पहाड़ों की रानी को निहारने के लिए राजधानी पहुंचना अभी से शुरू हो गए हैं। पार्किंग के साथ-साथ हर साल की तरह पानी की खपत बढ़ने की वजह से जल संकट भी होगा। प्रशासन की व्यवस्था पुराने ढर्रे वाली ही है जबकि पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है। पार्किंग की समस्या से जहां पर्यटकों और स्थानीय लोगों को जूझना पड़ेगा, वहीं पेयजल सप्लाई में भी कटौती की जाएगी।
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पार्किंग संचालकों ने मचाई लूट, निगम ने टेके घुटने
एमसी की पर्चियां दिखाने भर के लिए, दूसरी पर्ची पर कट रहा शुल्क
शिमला। राजधानी में पर्यटन सीजन शुरू होने से पहले ही पार्किंग संचालकों ने लूट शुरू कर दी है। शुल्क काटने के लिए नगर निगम द्वारा दी गई पर्चियां सिर्फ दिखाने के लिए रखी गई हैं। पर्यटकों से पार्किंग संचालक अपनी पर्चियों पर मनमाने दाम वसूल रहे हैं। स्थानीय लोगों को जहां पार्किंग में जगह देने से संचालक साफ इंकार कर रहे हैं, वहीं पर्यटकों से जमकर लूट-खसूट की जा रही है।
शिमला में कार्ट रोड पर लिफ्ट और इसके आसपास स्थित पार्किंग स्थलों के ठेकेदारों ने अपने स्तर पर ही पार्किंग के दाम बढ़ा दिए हैं। हालत यह है कि एक छोटी गाड़ी की छह घंटे की पार्किंग के लिए चार सौ रुपये तक वसूले जा रहे हैं। नगर निगम की पर्चियों के बजाय पार्किंग संचालक अपनी ही पर्चियां पर्यटकों को बांट रहे हैं। पर्यटकों के साथ धोखाधड़ी करने वाले पार्किंग संचालकों के खिलाफ कार्रवाई करने के दावे करने वाला निगम प्रशासन यह सब कुछ जानकर भी अंजान बना हुआ है। राजधानी में बढ़ते वाहनों की संख्या के कारण पार्किंग की समस्या विकराल होती जा रही है। बढ़ते वाहनों की संख्या से उपनगर संजौली, लक्कड़ बाजार, बालूगंज, कसुम्पटी, खलीनी और टुटू में ट्रैफिक जाम की समस्या आम बन गई है। कंकरीट के जंगल में बदल चुके शहर में भवन निर्माण की दौड़ और सुनियोजन की कमी के कारण पार्किंग जैसी जरूरत को दरकिनार रखा गया है। ऐसे में शिमला की सड़कों पर वाहनों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी तो हुई लेकिन पार्किंग के अभाव में यह आम लोगों के लिए आफत बन गई है।
एमसी के निर्धारित रेट
समय अवधि कार बड़ी गाड़ी टू व्हीलर
0-6 घंटे 40 रुपये 50 रुपये 15 रुपये
6-12 घंटे 50 रुपये 60 रुपये 25 रुपये
12-24 घंटे 60 रुपये 70 रुपये 35 रुपये
तय रेट से अधिक वसूली हो तो यहां शिकायत करें
नगर निगम ने पार्किंग संचालकों को स्वयं प्रिंट करवाकर रसीद बुक दी हैं। इन रसीद बुक में नगर निगम के महापौर और आयुक्त का फोन नंबर शिकायत के लिए लिखा गया है। इस पर पार्किंग के निर्धारित रेट भी लिखे हैं। अगर पार्किंग संचालक तय रेट से ज्यादा वसूली करें तो 94180 22007 या लैंड लाइन फोन नंबर 0177-2812360, 0177-2802771 और 0177-2812899 पर शिकायत करें।
शिकायत आने पर होगी कार्रवाई : महापौर
महापौर संजय चौहान का कहना है कि कोई भी शिकायत आने पर पार्किंग ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई होगी। निगम ने इस तरह की शिकायतों पर पहले भी कई बार पार्किंग ठेकेदारों को जुर्माना लगाया है।
75 फीसदी होटलों में नहीं पार्किंग
हिल्सक्वीन के 75 फीसदी होटल बिना पार्किंग सुविधा के चल रहे हैं। पार्किंग न होने के कारण इन होटलों में ठहरने वाले सैलानियों को शहर की सड़कों पर ही गाड़ियां खड़ी करनी पड़ रही हैं।
सील्ड एरिया में पर्यटक वाहनों पर प्रतिबंध
शहर के सील्ड एरिया में बने कुछ होटलों में पार्किंग तो बनाई गई है लेकिन सील्ड एरिया परमिट न होने के कारण यहां पर्यटक वाहनों के प्रवेश पर पाबंदी है।
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पानी की सप्लाई में कटौती को रहें तैयार
पर्यटकों की आमद से बढ़ेगी पानी की खपत
शिमला। मैदानी इलाकों में बढ़ती तपिश से राहत पाने के लिए पर्यटकों ने हिल्सक्वीन का रुख कर लिया है। आने वाले सप्ताह में पर्यटकों की आमद के साथ पानी की खपत भी बढ़ेगी। इस खपत को पूरा करने के लिए नगर निगम शहर में एक दिन छोड़कर पानी की सप्लाई देगा या सप्लाई के समय में कटौती की जाएगी। होटल कारोबारियों को पानी खरीदकर गुजारा करना पड़ेगा। यही नहीं, बावड़ियों और चश्मों से भी काम चलाया जाएगा।
मौसम कोई भी हो, शिमला के लोगों को पानी की किल्लत झेलनी ही पड़ती है। गर्मी में पेयजल योजनाओं का जल स्तर गिरता है तो बरसात में पानी के साथ गाद जलापूर्ति प्रभावित करती है। सर्दी में पानी के पाइप जमने से पानी की किल्लत हो जाती है। शहर में पानी की आपूर्ति में सुधार के लिए पानी की पंपिंग, शहर तक पानी की सप्लाई व शहर में पानी के वितरण का काम दो अलग-अलग एजेंसियों के हवाले है। आईपीएच पेयजल योजनाओं में पंपिंग से लेकर शहर में बने पानी के मुख्य टैंकों तक सप्लाई पहुंचाता है। इन मुख्य टैंकों से पानी के वितरण का काम नगर निगम का है। लीकेज की समस्या के चलते भी काफी तादाद में पानी बर्बाद हो रहा है। सार्वजनिक नल के बाहर बर्तनों की लंबी कतारें यह बयां करने के लिए काफी हैं कि शासन में बैठे हुक्मरान पानी की किल्लत दूर करवाने में कितने फिक्रमंद हैं। अंग्रेजों के जमाने की मशीनरी अभी भी इस्तेमाल हो रही है। गिरि पेयजल योजना 2010 में चालू हुई थी। उसके बाद किसी भी नई योजना का प्लान नहीं बना है।