आने के लिए धन्यवाद, नेताओं से कहना कि वोट मांगने न आएं….

बंजारावाला क्षेत्र में हुए जलभराव की सूचना के साथ सुबह आठ बजे रेनकोट पहनकर घर से निकला तो बरसात के भयानक रूप का अंदाजा नहीं था। लेकिन बंगाली कोठी से तालाब बनी सड़कों को देख कुछ अंदेशा हो गया।

बंजारावाला पहुंचते ही पुलिया पर खड़े लोग दिखे। जो जलमगभन हुए घरों को देखकर अफसोस कर रहे थे। तसवीरें लेने के लिए जैसे ही कैमरा निकाला तो घरों की छतों पर फंसे लोगों की करुण पुकार सुनाई दी। उनके घरों तक जाने वाली सड़क दरिया बन चुकी थी।

ऐसे में दीवारों और छतों के सहारे कूदते हुए किसी तरह एक घर तक पहुंचा। वहां एक युवा पानी निकालने की बेकार कोशिश कर रहा था और बुजुर्ग प्रशासन की व्यवस्था को कोस रहे थे।

बंजारावाला से निकलकर कार्गी रोड की तरफ बढ़ा तो हर जगह भयावह मंजर नजर आया। हर कोई अपने घर में भरे पानी की तस्वीरें खींचने के लिए कह रहा था। उनका इरादा अपनी परेशानी को अखबार के माध्यम से शासन-प्रशासन तक पहुंचाने की थी लेकिन मेरी अपनी सीमाएं थीं।

धर्मपुर क्षेत्र में लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा। वे इस वजह से नाराज थे कि मौके पर पहुंचने में मैंने देरी क्यों की? यह परेशानी से उपजा ऐसा असहाय क्रोध था जिसको केवल नजरअंदाज ही किया जा सकता था। मैं माफी मांगकर अपने काम में लग गया। वे नाराज थे कि उनकी दशा देखने प्रशासन की तरफ से कोई नहीं आया।

धर्मपुर से निकला तो दोपहर के तीन बज चुके थे। इस बीच बरसात ने मेरे फोन को खराब कर दिया। आपदा की सूचनाएं आनी बंद हो गईं। ऐसे में मैं खुद ही शहर की हालत देखने निकल पड़ा। इस बीच कई जगहों पर सड़कें धंसी नजर आईं और जहां-तहां पेड़ गिरे दिखे। आसमान से लगातार गिर रही पानी की धार के आगे मेरे रेनकोट ने हार मान ली थी, लेकिन मैं नहीं हारा था। मेरे मन में अपने कैमरे में लोगों की परेशानियों को कैद करने की वही बेचैनी थी जो घर से निकलने से पहले थी।

शाम के छह बजे नगर निगम में गिरे पेड़ की तस्वीर खींचने के बाद मैंने सोचा कि अब दफ्तर चलता हूं लेकिन तभी फोन की रिंग टोन बज उठी। फोन ऑन करते ही एक रोते हुए व्यक्ति की आवाज सुनाई दी।

मेरा घर डूब रहा है, मेरे मवेशी डूब रहे हैं। कोई नहीं आया…मैं क्या करुं…? और सिसकते हुए विनती की कि मेरे घर की एक फोटो ले लो…। अजबपुरकलां क्षेत्र मेरे दफ्तर के रास्ते में नहीं पड़ता। ऐसे में और भीगने की हिम्मत मुझमें नहीं थी। दफ्तर चलने की सोच कर बाइक पर बैठा था लेकिन बाइक आफिस की तरफ आने के बजाए उस सिसकती आवाज की तरफ चल दी।

बताई गई जगह पर पहुंचा तो कोई नहीं मिला। कुछ फोटो खींचने के बाद जब चलने लगा तो एक मकान की खिड़की से धीमी आवाज आई कि आने के लिए धन्यवाद और नेताओं से कह देना कि अब वोट मांगने न आएं…। कुछ और जगहों की तस्वीरें खींचने के बाद मैं करीब आठ बजे आफिस पहुंचा। इस बीच बारिश से मेरा तन तरबतर हो चुका था लेकिन उससे अधिक मन भीगा था…।

Related posts