अकाली दल का कद बढ़ने से भाजपा पर होगा दबाव

नई दिल्ली। नवंबर-84 के सिख विरोधी दंगों में मारे गए लोगों की याद में बन रहे शहीदी स्मारक को लेकर सिख राजनीति गरमा गई है। माना जा रहा है कि यह मुद्दा दिल्ली की राजनीति को भी प्रभावित करेगा और विधानसभा चुनाव में इसका स्पष्ट प्रभाव देखने को मिल सकता है। वजह यह है कि इस मुद्दे ने दिल्ली प्रदेश शिरोमणी अकाली दल (शिअद) का कद दिल्ली के सिख-पंजाबी वर्ग में बढ़ा दिया है।
अकाली दल का दिल्ली में कद बढ़ने से कांग्रेस के लिए तो परेशानी होगी ही, भाजपा की भी मुश्किलें बढ़ेंगी। दल की दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में वापसी ने यह संकेत भी दिया है कि विधानसभा चुनाव में उसकी दावेदारी बढ़ेगी। भाजपा-शिअद गठबंधन की एक दर्जन से अधिक सीटों पर भाजपा को दबाव झेलना पड़ेगा। आगामी चुनाव में शिअद चार सीट पर समझौता नहीं करने वाला, क्योंकि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में विजय के बाद पंजाब के नेताओं का हस्तक्षेप दिल्ली की राजनीति में बढ़ता दिख रहा रहा है। पंजाब के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री खुद दिलचस्पी ले रहे है। माना जा रहा है कि जिस तरह प्रबंधक कमेटी के चुनाव के वक्त पंजाब की पूरी कैबिनेट दिल्ली में डेरा जमाए थी, वैसा ही विधानसभा चुनाव में भी होगा।
सरना गुट के सत्ता से बाहर होने से कांग्रेस की भी मुश्किल बढ़ सकती है। वजह यह है कि सिख समुदाय में पैठ रखने वाला यह गुट दिल्ली की राजनीति से बिलकुल ही बाहर हो गया है। गौरतलब है कि पिछले चुनाव में बादल गुट को आदर्श नगर, राजौरी गार्डन, जगपुरा और शाहदरा विधानसभा सीट पाकर संतोष करना पड़ा। दरअसल उस वक्त गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पर सरना गुट के काबिज होने के कारण शिअद की स्थिति कमजोर मानी जा रही थी। पुराने आंकड़ों पर गौर करें, तो 1993 की विधानसभा में विभिन्न पार्टियों के 15 विधायक सिख और पंजाबी समुदाय से थे, जो 1998 में बढ़कर 20 हो गए।

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